Siddique-e-Akbar Ka Kirdar O Farameen

Book Name:Siddique-e-Akbar Ka Kirdar O Farameen

मेहरबानियां फ़रमाने वाले आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने अपने इस सच्चे आ़शिक़ को देखा, तो आंखों में आंसू आ गए और आगे बढ़ कर उन्हें थाम लिया, उन के बोसे लेने लगे । येह मुआ़मला देख कर तमाम मुसलमान भी आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की त़रफ़ बढ़े । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को ज़ख़्मी देख कर अपनी उम्मत के ग़म में आंसू बहाने वाले आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर बड़ी रिक़्क़त त़ारी हुई । अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! मेरे मां-बाप आप पर क़ुरबान ! मैं ठीक हूं, बस चेहरा थोड़ा ज़ख़्मी हो गया है । जिस दिन आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ को तकालीफ़ दी गईं, उसी रोज़ आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की वालिदा, ह़ज़रते सय्यिदतुना उम्मुल ख़ैर सलमा और ह़ज़रते सय्यिदुना अमीरे ह़म्ज़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا भी इस्लाम ले आए थे । (تاریخ مدینہ دمشق،۳۰/۴۹، البدایۃ والنھایۃ،  ۲/۳۶۹)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने इ़श्के़ रसूल में डूब कर दीने इस्लाम की तब्लीग़ के लिये किस क़दर आज़माइशें बरदाश्त कीं । इस्लाम के इस अ़ज़ीम मुबल्लिग़ ने अपना सब कुछ अल्लाह करीम और अल्लाह पाक की रह़मत बन कर दुन्या में तशरीफ़ लाने वाले आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की मह़ब्बत में क़ुरबान कर दिया, इस क़दर तक्लीफ़ें और मुसीबतें पहुंचने के बा'द भी अपनी फ़िक्र छोड़ कर अपने मह़बूब आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को याद कर रहे हैं और बे क़रार हैं कि किसी त़रह़ मुझे अपना क़ुर्ब बख़्शने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का ह़ाल मा'लूम हो जाए कि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ किसी परेशानी में तो नहीं । ज़रा ग़ौर फ़रमाइये ! हर ऐ़ब से पाक आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के जा निसार सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان के इ़श्क़ो मह़ब्बत का तो येह आ़लम था । आइये ! हम भी ग़ौर करते हैं कि अपनी उम्मत के ग़म में आंसू बहाने वाले आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से हम कैसी मह़ब्बत करते हैं ? क्या हमारे अन्दर भी इस्लाम की