Book Name:Siddique-e-Akbar Ka Kirdar O Farameen
में आता है कि आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ गर्मियों में (नफ़्ल) रोज़े रखते और सर्दियों में छोड़ देते थे । (الزھد للامام احمد،کتاب الزھد، زھد أبی بکر صدیق ،ص۱۴۱،حدیث: ۵۸۵)
वाके़ई़ येह अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ का ज़ौके़ इ़बादत था कि क़ुरआने करीम की तिलावत करते हुवे रोते और फ़र्ज़ रोज़ों के इ़लावा गर्मियों में नफ़्ल रोज़े रखते । अगर आज हम अपनी ह़ालत पर ग़ौर करें, तो सर्दियों में फ़र्ज़ रोज़ों में भी सुस्ती करते हैं, ह़ालांकि सर्दियों में उ़मूमन दिन बहुत छोटे और रातें बहुत लम्बी होती हैं और दिन में प्यास भी बहुत कम लगती है जब कि गर्मियों में उ़मूमन दिन बहुत लम्बा और रातें बहुत छोटी होती हैं और दिन में प्यास की शिद्दत भी ज़ियादा होती है । यक़ीनन येह दुन्या की गर्मी, आख़िरत की गर्मी के मुक़ाबले में कुछ भी नहीं कि जब क़ियामत का दिन होगा और सूरज एक मील पर रह कर आग बरसा रहा होगा, शिद्दते प्यास से ज़बानें बाहर निकल रही होंगी, लोग अपने ही पसीने में नहा रहे होंगे, उस वक़्त की गर्मी बरदाश्त करना यक़ीनन हमारे बस में नहीं । लिहाज़ा दुन्या में ही रब्बे करीम की रिज़ा के लिये अच्छे आ'माल करने की कोशिश करनी चाहिये, अल्लाह करीम और हम गुनाहगारों की शफ़ाअ़त फ़रमाने वाले रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को मना लीजिये, क़ियामत के दिन अल्लाह पाक की रह़मत से अ़र्श का साया पाने के लिये आज दुन्या ही में नेकियों की कसरत करनी होगी ।
आइये ! येह मदनी सोच पाने के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता रह कर अ़मली त़ौर पर शामिल हो कर नेकियों का ज़ख़ीरा जम्अ़ करते हुवे राहे आख़िरत के लिये सामाने आख़िरत जम्अ़ कीजिये ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ ! आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी दुन्या भर में इस्लाम की दा'वत आ़म करने के लिये कमो बेश 107 शो'बाजात में मसरूफे़ अ़मल है । इन्ही में से एक शो'बा "मजलिसे आई-टी" भी है, जिस का काम इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नॉलोजी के ज़रीए़ दुन्या भर के लोगों को इस्लाम के महके महके