Book Name:Allah waloon ki Namaz
लेकिन आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने नमाज़ न तोड़ी फिर उस ने तीसरा तीर मारा, वोह भी सीधा आया और आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ को ज़ख़्मी करता हुवा जिस्म में पैवस्त हो गया । आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने रुकूअ़ व सुजूद किये और नमाज़ मुकम्मल करने के बा'द अपने रफ़ीक़ को जगाया । जब उस काफ़िर ने देखा कि यहां येह अकेला नहीं बल्कि इस के रुफ़क़ा (या'नी साथी) भी क़रीब ही मौजूद हैं, तो वोह फ़ौरन भाग गया । मुहाजिर सह़ाबी رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने अपने रफ़ीक़ (या'नी साथी) की येह ह़ालत देखी, तो जल्दी जल्दी आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ के जिस्म से तीर निकाले और पूछा : जब आप पर दुश्मन ने ह़म्ला किया, तो आप ने मुझे जगाया क्यूं नहीं ? इस पर क़ुरआन व नमाज़ के शैदाई उस अन्सारी सह़ाबी رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने जवाब दिया : मैं ने नमाज़ में एक सूरत शुरूअ़ की हुई थी, मैं ने येह
गवारा न किया कि सूरत को अधूरा छोड़ कर नमाज़ तोड़ डालूं, ख़ुदा की क़सम ! अगर मुझे प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने पहरे की ज़िम्मेदारी न दी होती, तो मैं अपनी जान दे देता लेकिन सूरत को ज़रूर मुकम्मल करता लेकिन मुझे ह़ुज़ूर सरापा नूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने पहरा देने का ह़ुक्म फ़रमाया था, इस लिये मेरी ज़िम्मेदारी थी कि इस को अह़सन त़रीके़ से सर अन्जाम दूं ।