Allah waloon ki Namaz

Book Name:Allah waloon ki Namaz

किया जाता है कि नमाज़ें तर्क करने का येह कबीरा गुनाह मैं जुमुआ के दिन तक या रमज़ानुल मुबारक तक मुसल्सल जारी रखूंगा । यक़ीनन येह सब कुछ ख़ौफे़ ख़ुदा और शौक़े इ़बादत न होने का वबाल है, वरना जिस के दिल में अल्लाह पाक का ख़ौफ़ और इ़बादत का ज़ौक़ो शौक़ होता है वोह हर ह़ाल में नमाज़ों की पाबन्दी करता है और अल्लाह पाक की ना फ़रमानी से बचता है ।

        हमारे अस्लाफ़ व बुज़ुर्गाने दीन शदीद बीमारी, बुढ़ापे या बहुत ज़ियादा जिस्मानी कमज़ोरी के बा वुजूद भी नमाज़ों से ग़फ़्लत न किया करते थे बल्कि जब तक कोई शरई मजबूरी न होती, नमाज़ की पाबन्दी किया करते थे । जैसा कि :

बीमारी के बा वुजूद नमाज़ की अदाएगी

        ह़ज़रते सय्यिदुना सुफ़्यान सौरी عَلَیْہِ رَحمَۃُ اللّٰہ ِالقَوِی कहते हैं : हमें ह़ज़रते सय्यिदुना त़ल्ह़ा बिन मसरफ़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के बारे में उन के पड़ोसी ने बताया कि वोह बीमार हैं । हम इ़यादत के लिये गए, तो ह़ज़रते सय्यिदुना ज़ुबैद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने उन से कहा : उठिये ! नमाज़ पढ़ लीजिये ! मुझे मा'लूम है कि आप नमाज़ से मह़ब्बत करते हैं । येह सुनते ही आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ नमाज़ के लिये खड़े हो गए । (حلیۃ الاولیاء ،طلحۃ بن مصرف،۵/۲۱،رقم:۶۱۷۱)