Allah waloon ki Namaz

Book Name:Allah waloon ki Namaz

ह़ालते क़ुऊ़द (या'नी अत्तह़िय्यात वग़ैरा पढ़ते हुवे) अपनी गोद पर नज़र रखनी चाहिये नीज़ सलाम फेरते वक़्त कातिबीन (या'नी आ'माल लिखने वाले फ़िरिश्तों) को मल्ह़ूज़ रखते हुवे अपने शानों (या'नी कन्धों) पर नज़र होनी चाहिये । (ह़याते आ'ला ह़ज़रत, 1 / 303, बित्तग़य्युर)

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा कि नमाज़ में इधर उधर देखने से गुरेज़ करना चाहिये । याद रखिये ! नमाज़ में इधर उधर देखने से तवज्जोह बटती है और दिल नमाज़ के बजाए दूसरी चीज़ों में मश्ग़ूल हो जाता है । शायद इसी वज्ह से नमाज़ पढ़ने के बा वुजूद न तो हमें इस की लज़्ज़त मह़सूस होती है और न ही दिल में इस का ह़क़ीक़ी शौक़ पैदा होता है, जिस के नतीजे में मा'मूली सर दर्द या हल्की फुल्की बीमारी या सिर्फ़ सुस्ती और काहिली की वज्ह से आए दिन हमारी नमाज़ें क़ज़ा हो जाती हैं बल्कि बा'ज़ ऐसे लोग भी हैं कि जब उन की एक या चन्द एक नमाज़ें रह जाएं, तो हफ़्तों हफ़्तों बल्कि महीनों महीनों तक जान बूझ कर नमाज़ छोड़ देते हैं और अगर कोई इस्लामी भाई उन पर इनफ़िरादी कोशिश करते हुवे नमाज़ों की तरग़ीब दिलाए, तो कहते हैं : अब اِنْ شَآءَ اللہ عَزَّ  وَجَلَّ अगले जुमुआ से दोबारा नमाज़ें पढ़ना शुरूअ़ करूंगा या रमज़ान से बा क़ाइ़दा नमाज़ों का एहतिमाम करूंगा । यूं गोया किसी क़िस्म की शर्म व झिजक के बिग़ैर बड़ी बहादुरी के साथ مَعَاذَ اللّٰہ عَزَّ  وَجَلَّ इस बात का इक़रार