Allah waloon ki Namaz

Book Name:Allah waloon ki Namaz

यक्सूई के साथ त़वील नमाज़ें पढ़ा करते थे और एक हम हैं कि अगर नमाज़ पढ़ने की सआदत मिल भी जाए, तो निहायत सुस्ती, काहिली और बे तवज्जोही के साथ इधर उधर देखते हुवे नमाज़ अदा करते हैं, जिस की वज्ह से ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ सिरे से ह़ासिल ही नहीं हो पाता ।

किस रुकन में कहां नज़र होनी चाहिये ?

        ख़लीफ़ए आ'ला ह़ज़रत, मौलाना सय्यिद अय्यूब अ़ली रज़वी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का बयान है कि (एक रोज़) बा'दे नमाज़े ज़ोहर आ'ला ह़ज़रत, इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ मस्जिद में वज़ीफ़ा पढ़ रहे थे कि एक अजनबी साह़िब ने सामने आ कर निय्यत बांधी, जब रुकूअ़ किया, तो गरदन उठाए हुवे सजदा गाह को देखते रहे, फ़ारिग़ होने पर आ'ला ह़ज़रत رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने पास बुला कर दरयाफ़्त किया कि रुकूअ़ की ह़ालत में इस क़दर गरदन आप ने क्यूं

उठाई थी ? उन्हों ने अ़र्ज़ किया : ह़ुज़ूर सजदे की जगह को देख रहा था । तो फ़रमाया : सजदे में क्या कीजियेगा ? (या'नी हर ह़ालत में सजदे की जगह पर नज़र नहीं होनी चाहिये) फिर फ़रमाया : ब ह़ालते क़ियाम नज़र सजदा गाह पर और ब ह़ालते रुकूअ़ पाउं की उंगलियों पर और ब ह़ालते तस्मीअ़ (या'नी रुकूअ़ से खड़े हो कर) सीने पर और ब ह़ालते सुजूद नाक पर और ब