Book Name:Ghous Pak Ka Ilmi Maqam
الاقطاب،ص۱۵۹) क्यूंकि बग़दाद ही उन दिनों इ़ल्मी व सियासी ए'तिबार से मुसलमानों का मर्कज़ था । चुनान्चे,
इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने की त़रफ़ इशारा
शैख़ मुह़म्मद बिन क़ाइद अल अवानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : एक मरतबा मैं ग़ौसे समदानी, शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की बारगाह में ह़ाज़िर था । मैं ने आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ से मुख़्तलिफ़ मुआ़मलात के बारे में सुवालात किये, उन्ही में से एक सुवाल येह भी था कि ह़ुज़ूर ! आप ने अपने मुआ़मलात की बुन्याद किस चीज़ पर रखी है ? आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इरशाद फ़रमाया : मैं ने अपने मुआ़मलात की बुन्याद सच्चाई पर रखी है, मैं ने कभी भी झूट और ग़लत़ बयानी से काम न लिया, बचपन में जब मैं मद्रसे में पढ़ा करता था, उस वक़्त भी कभी झूट नहीं बोला फिर फ़रमाने लगे : मैं एक दिन ह़ज के दिनों में जंगल की त़रफ़ गया, मैं एक बैल (Bull) के पीछे पीछे चल रहा था कि अचानक उस बैल (Bull) ने मेरी त़रफ़ देख कर कहा : یَاعَبْدَالْقَادِرِمَالِھٰذَاخُلِقْتَ ऐ अ़ब्दुल क़ादिर ! तुम्हें इस क़िस्म के कामों के लिये तो पैदा नहीं किया गया । मैं घबरा कर घर आया और अपने घर की छत पर चढ़ गया, क्या देखता हूं कि मैदाने अ़रफ़ात में लोग खड़े हैं । इस के बा'द मैं ने अपनी वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا की ख़िदमत में ह़ाज़िर हो कर अ़र्ज़ किया : आप मुझे राहे ख़ुदा के लिये छोड़ दीजिये और मुझे बग़दाद जाने की इजाज़त दीजिये ताकि मैं वहां जा कर इ़ल्मे दीन ह़ासिल करूं । वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا ने मुझ से इस का सबब पूछा, तो मैं ने बैल (Bull) वाला वाक़िआ़ अ़र्ज़ कर दिया । इस पर उन की आंखों में आंसू आ गए और वोह 80 दीनार जो मेरे वालिदे माजिद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की विरासत थे मेरे पास ले आईं, मैं ने उन में से 40 दीनार ले लिये और 40 दीनार अपने भाई सय्यिद अबू अह़मद जीलानी (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) के लिये छोड़ दिये । वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا ने मेरे चालीस दीनार मेरे बहुत से पैवन्द लगे हुवे मख़्सूस क़िस्म के जुब्बे में सी दिये, मुझे बग़दाद जाने की इजाज़त इ़नायत फ़रमा दी, मुझे हर ह़ाल में सच बोलने की ताकीद फ़रमाई । वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا जीलान के बाहर तक मुझे छोड़ने के लिये तशरीफ़ लाईं और फ़रमाया : یَا وَلَدِیْ اِذْہَبْ فَقَدْ خَرَجْتُ عَنْکَ لِلّٰہِ فَہٰذَا وَجْہٌ لَااَرَاہُ اِلٰی یَوْمِ الْقِیَامَۃِ ऐ मेरे प्यारे बेटे ! जाओ ! अल्लाह पाक की रिज़ा की ख़ात़िर मैं तुम्हें अपने पास से जुदा करती हूं और अब मुझे तुम्हारा चेहरा क़ियामत में ही देखना नसीब होगा । फिर मैं बग़दाद जाने वाले एक छोटे क़ाफ़िले के साथ रवाना हो गया, जब हम लोग (ईरान के शहर) हमदान से आगे बढ़े, तो साठ घोड़े सुवार डाकूओं ने क़ाफ़िले को आ घेरा और अहले क़ाफ़िला को लूटना शुरूअ़ कर दिया । मुझ से किसी ने ज़ोर ज़बरदस्ती न की, अलबत्ता उन में से एक शख़्स ने मुझ से पूछा कि तुम्हारे पास क्या है ? मैं ने सच बोलते हुवे कहा : मेरे पास चालीस दीनार (या'नी सोने के सिक्के) हैं । उस ने पूछा : कहां हैं ? मैं ने बताया : मेरी बग़ल के नीचे मेरी गुदड़ी में सिले हुवे हैं । वोह इस बात को मज़ाक़ समझ कर मेरे पास से चला गया । थोड़ी देर बा'द एक दूसरे शख़्स ने आ कर येही सुवालात किये और मैं ने वोही जवाबात दिये, वोह शख़्स भी मेरे पास से चला