Book Name:Ghous Pak Ka Ilmi Maqam
1. इरशाद फ़रमाया : अल्लाह पाक जिस के साथ भलाई का इरादा फ़रमाता है, उसे दीन की समझ अ़त़ा फ़रमाता है ।
(بخاری، کتاب العلم، باب من یرد اللّٰه به خيراً...الخ ،۱/ ۴۲، حدیث:۷۱)
2. इरशाद फ़रमाया : जब इन्सान फ़ौत हो जाता है, तो उस के आ'माल ख़त्म हो जाते हैं, सिवाए तीन के : (1) सदक़ए जारिया (2) ऐसा इ़ल्म जिस से फ़ाइदा उठाया जाए और (3) नेक औलाद जो उस के लिये दुआ़ करती है । (مسلم،کتاب الوصیة،باب ما یلحق الانسان من الثواب بعد وفاتہ، ص ۸۸۶، حدیث:۱۶۳۱)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा अह़ादीसे मुबारका से इ़ल्मे दीन के जहां और बहुत से फ़ज़ाइल मा'लूम हुवे, वहां येह भी मा'लूम हुवा कि सदक़ए जारिया, इ़ल्मे दीन को फैलाने और नेक औलाद ऐसी नेकियां हैं कि मरने के बा'द भी इन का सवाब पहुंचता रहता है, लिहाज़ा अपने बच्चों को दीनी ता'लीम दिलवाइये और उन्हें जामिअ़तुल मदीना में दाख़िल करवाइये । फ़ी ज़माना बुराइयों में सब से बड़ी बुराई बुन्यादी शरई़ मसाइल से दूरी है, जो मुआ़शरे की दीगर बुराइयों में सब से ऊपर है । घर बार का मुआ़मला हो या कारोबार का, दोस्त अह़बाब का हो या रिश्तेदार का, निकाह़ का हो या औलाद की अच्छी तरबिय्यत का, ग़रज़ ! क्या अल्लाह पाक के ह़ुक़ूक़ और क्या बन्दों के ह़ुक़ूक़, ज़िन्दगी के हर शो'बे में जहां भी जिस अन्दाज़ से भी ख़राबियां पाई जा रही हैं, अगर हम सन्जीदगी से ग़ौर करें, तो येह बात हम पर ज़ाहिर हो जाएगी कि इस का बुन्यादी सबब इ़ल्मे दीन से दूरी है । इ़ल्मे दीन और दुरुस्त रहनुमाई से मह़रूमी के बाइ़स न सिर्फ़ मुआ़मलात व अख़्लाक़िय्यात में बल्कि अ़क़ाइद व इ़बादात तक में त़रह़ त़रह़ की बुराइयां और ख़राबियां निहायत तेज़ी के साथ बढ़ती जा रही हैं जिन की इस्लाह़ के लिये सिर्फ़ इ़ल्मे दीन ह़ासिल कर लेना ही काफ़ी नहीं बल्कि अपने इ़ल्म पर अ़मल करना और इस के ज़रीए़ दूसरों की इस्लाह़ की कोशिश करना भी ज़रूरी है । येही वज्ह है कि शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने अपने मुरीदों, मह़ब्बत करने और तअ़ल्लुक़ रखने वालों को अपनी और दूसरों की इस्लाह़ की कोशिश में मगन रहने का मदनी ज़ेहन देते हुवे उन्हें येह मदनी मक़्सद अ़त़ा फ़रमाया है : मुझे अपनी और सारी दुन्या के लोगों की इस्लाह़ की कोशिश करनी है । اِنْ شَآءَ اللّٰہ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इसी मदनी मक़्सद के तह़त आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी दुन्या भर में कमो बेश 104 शो'बाजात में सुन्नतों की ख़िदमत में मसरूफ़े अ़मल है, इन्ही में से एक "मजलिसे उ़श्र व अत़राफ़ गांव" भी है, जो उ़श्र के दिनों में हफ़्तावार और