Ghous Pak Ka Ilmi Maqam

Book Name:Ghous Pak Ka Ilmi Maqam

शिद्दत से मेरा मुंह खुल जाता लेकिन मैं ने अपने नफ़्स को इस ह़रकत पर समझाया, इतने में उस ने मेरी त़रफ़ देखा और खाना ला कर मुझे पेश किया । उस ने मुझ से पूछा कि आप कहां के रहने वाले हैं ? और क्या करते हैं ? मैं ने बताया कि जीलान में रहता हूं और यहां इ़ल्मे दीन ह़ासिल करता हूं । उस ने मुझ से पूछा : क्या आप जीलान से तअ़ल्लुक़ रखने वाले अ़ब्दुल क़ादिर नामी किसी नौजवान को जानते हैं ? मैं ने कहा : वोह मैं ही हूं ! येह सुन कर वोह बेचैन हो गया और मुझ से मा'ज़िरत करते हुवे कहने लगा कि आप की वालिदए मोह़तरमा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا ने मेरे हाथ आप के लिये आठ दीनार भेजे थे, जब मैं बग़दाद आया था उस वक़्त मेरे पास अपना ज़ाती ख़र्च मौजूद था लेकिन आप को तलाश करते करते इतने दिन गुज़र गए कि मेरे पास मेरा ज़ाती ख़र्च ख़त्म हो गया, मुझे भूक बरदाश्त करते हुवे आज तीसरा दिन था, मजबूर हो कर आप की अमानत में से एक वक़्त के खाने के लिये रोटी और येह गोश्त लाया हूं, अब आप ख़ुशी से येह खाना तनावुल फ़रमाएं क्यूंकि येह सब कुछ दर ह़क़ीक़त आप ही का है, अब आप मेरे नहीं बल्कि मैं आप का मेहमान हूं । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं ने उसे तसल्ली दी और इस बात पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की, जब हम खाना खा कर फ़ारिग़ हुवे, तो मैं ने बक़िय्या खाना और कुछ माल उसे दे कर रुख़्सत किया ।

(قلائد الجواہر  ص۹ملخصاً)

हैं बाइ़से बरकत ग़ौसे पाक             कमज़ोर की त़ाक़त ग़ौसे पाक

हैं साह़िबे इ़ज़्ज़त ग़ौसे पाक                        मजबूर की राह़त ग़ौसे पाक

٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक ٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक ٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

मसाइब का हुजूम और सब्र का अन्दाज़

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! سُبْحٰنَ اللّٰہ ! आप ने मुलाह़ज़ा फ़रमाया ! क़ुत़्बे रब्बानी, ग़ौसे समदानी, क़िन्दीले नूरानी, शहबाज़े ला मकानी, ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने के लिये किस क़दर आज़माइश व तकालीफ़ और भूक बरदाश्त की और इस आ़लम में भी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने तक़्वा व परहेज़गारी, सब्र और ईसार का दामन न छोड़ा बल्कि अगर कहीं से कुछ खाने को मिल भी जाता, तो जज़्बए हमदर्दी और ख़ैर ख़्वाही के पेशे नज़र दूसरों पर ईसार कर दिया करते और ख़ुद सब्र से काम लेते । इ़ल्मे दीन की राह में ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को किस क़दर मुसीबतों और तक्लीफ़ों का सामना करना पड़ा, इस का अन्दाज़ा इस बात से लगाइये कि शैख़ अ़ब्दुल्लाह नज्जार رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मुझे ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने ब ज़ाते ख़ुद बताया है कि मुझ पर ऐसी ऐसी मुसीबतें भी आईं थीं कि अगर वोह मुसीबतें पहाड़ों पर नाज़िल होतीं, तो पहाड़ भी रेज़ा रेज़ा हो कर बिखर जाते, जब उन मुसीबतों की कसरत मेरी क़ुव्वते बरदाश्त से बाहर हो जाती, तो मैं ज़मीन पर लेट जाता और येह आयाते मुबारका तिलावत करता : (پ ۳۰،الم نشرح:۵،۶) l&"Ýè"“s2m%"Ýè"“sv (तर्जमए