Book Name:Ghous Pak Ka Ilmi Maqam
दाढ़ी और गन्दुमी रंग के मालिक थे । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की भंवें मिली हुई थीं, आवाज़ मुबारक बुलन्द और चेहरा निहायत ही ख़ूब सूरत था । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ निहायत ही ज़हीन थे ।
(نزہۃ الخاطرالفاتر ، ص۱۹)
आ़शिक़े औलिया व ग़ौसुल वरा, शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपने रिसाले "मुन्ने की लाश" के सफ़ह़ा नम्बर 4 पर तह़रीर फ़रमाते हैं : पांच साल की उ़म्र में (ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ) जब पहली बार बिस्मिल्लाह पढ़ने की रस्म के लिये किसी बुज़ुर्ग के पास बैठे, तो اَعُوْذُ بِاللہِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْم और بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیۡمِ पढ़ कर सूरए फ़ातिह़ा और الٓمٓ से ले कर 18 पारे पढ़ कर सुना दिये । उन बुज़ुर्ग ने कहा : बेटे और पढ़िये ! फ़रमाया : बस मुझे इतना ही याद है क्यूंकि मेरी मां को भी इतना ही याद था, जब मैं अपनी मां के पेट में था, उस वक़्त वोह पढ़ा करती थीं, मैं ने सुन कर याद कर लिया था । (रिसाला : मुन्ने की लाश, स. 4, ब ह़वाला : الحقائق فی الحدائق ص۱۴۰)
इब्तिदाई ता'लीम
अभी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ छोटे ही थे कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के वालिदे मोह़तरम, ह़ज़रते सय्यिद अबू सालेह़ मूसा जंगी दोस्त رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इन्तिक़ाल फ़रमा गए । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के नानाजान, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह सौमई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की परवरिश फ़रमाई जो कि जीलान शरीफ़ के बुज़ुर्गों में से थे और निहायत मुत्तक़ी व परहेज़गार भी थे, इन्ही से ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इब्तिदाई ता'लीमो तरबिय्यत ह़ासिल की ।
ह़ुज़ूरे पुरनूर, मह़बूबे सुब्ह़ानी, शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ से किसी ने पूछा : आप ने अपने आप को वली कब से जाना ? इरशाद फ़रमाया : मेरी उ़म्र दस साल की थी, मैं अपने घर से मद्रसे में पढ़ने जाता, तो फ़िरिश्तों को देखता जो लड़कों से कह रहे होते थे कि अल्लाह पाक के वली के बैठने के लिये जगह कुशादा कर दो । (بہجۃالاسرار،ذکرکلمات اخبربھا…الخ، ص۴۸)
अल्लाह की रह़मत ग़ौसे पाक हो हम पे इ़नायत ग़ौसे पाक
हैं बाइ़से बरकत ग़ौसे पाक कमज़ोर की त़ाक़त ग़ौसे पाक
٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक ٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक ٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इब्तिदाई ता'लीम ह़ासिल करने के बा'द मज़ीद इ़ल्मे दीन सीखने के लिये 488 हिजरी में 18 साल की उ़म्र में बग़दाद शरीफ़ तशरीफ़ ले गए । (سیر