Book Name:Ghous Pak Ka Ilmi Maqam
गया । उन दोनों ने जब अपने सरदार को येह बात बताई, तो उस के ह़ुक्म पर मुझे उस के पास ले जाया गया, उस वक़्त वोह सब लोग लूटा हुवा माल आपस में तक़्सीम कर रहे थे । मुझे देख कर उन के सरदार ने पूछा कि तुम्हारे पास क्या है ? मैं ने बताया : मेरे पास मेरी गुदड़ी में चालीस दीनार हैं । सरदार के कहने पर मेरी गुदड़ी खोली गई, तो उस में से वाके़ई़ चालीस दीनार बर आमद हो गए । सरदार सख़्त ह़ैरान हुवा और मुझ से पूछने लगा : مَاحَمَلَکَ عَلَی ہٰذا الْاِعْتِرَافِ तुम्हें इन दीनारों का ए'तिराफ़ करने पर किस चीज़ ने मजबूर किया ? (या'नी तुम चाहते तो हमें न बताते) । मैं ने कहा : मेरी वालिदा (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا) ने मुझ से वा'दा लिया था कि मैं हमेशा सच बोलूं और कभी इस वा'दे की ख़िलाफ़ वर्ज़ी न करूं । येह सुन कर उस सरदार की आंखों से आंसू बह निकले और कहने लगा कि एक तुम हो कि अपनी मां से किया हुवा वा'दा भी निभा रहे हो और एक मैं हूं कि कई सालों से अपने रब्बे करीम के वा'दे की ख़िलाफ़ वर्ज़ी कर रहा हूं । उस ने उसी वक़्त मेरे हाथ पर तौबा की । उस के साथियों ने जब येह मन्ज़र देखा, तो बोले : हम डाका डालने में तुम्हारे साथ थे, तो तौबा करने में भी तुम्हारे साथ रहेंगे । चुनान्चे, उन सब ने तौबा की और लूटा हुवा माल अहले क़ाफ़िला को वापस कर दिया । येही वोह लोग थे जिन्हों ने सब से पहले मेरे हाथ पर तौबा की । (قلائد الجواہر، ص۸ ،ملخصاً وبغیر قلیل)
दिलवाइये जन्नत ग़ौसे पाक दो बदियों से नफ़रत ग़ौसे पाक
दो शौके़ इ़बादत ग़ौसे पाक सरकार की उल्फ़त ग़ौसे पाक
٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक ٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक ٭ मरह़बा या ग़ौसे पाक
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा ह़िकायत से पता चला ! सरकारे बग़दाद, ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने का इस क़दर शौक़ था कि इस की ख़ात़िर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने न सिर्फ़ घर बार को छोड़ कर दूर दराज़ का सफ़र इख़्तियार फ़रमाया बल्कि अपनी मेहरबान वालिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا की जुदाई भी बरदाश्त फ़रमा ली । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की वालिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا की क़ुरबानी भी सद मरह़बा ! कि न सिर्फ़ अपने शहज़ादे की जुदाई के ग़म को नज़र अन्दाज़ करते हुवे उन्हें इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने की इजाज़त अ़त़ा फ़रमा दी बल्कि अपने शहज़ादे को ह़ुसूले इ़ल्म और ख़िदमते इ़ल्म के लिये ऐसा वक़्फ़ किया कि सफ़र पर रुख़्सत करते हुवे वाज़ेह़ त़ौर पर फ़रमा दिया : یَا وَلَدِیْ اِذْہَبْ فَقَدْ خَرَجْتُ عَنْکَ لِلّٰہِ فَہٰذَا وَجْہٌ لَااَرَاہُ اِلٰی یَوْمِ الْقِیَامَۃِ ऐ मेरे प्यारे बेटे ! जाओ ! मैं अल्लाह पाक की रिज़ा के लिये तुम से जुदाई इख़्तियार करती हूं, लिहाज़ा अब क़ियामत तक तुम्हारा येह चेहरा न देखूंगी ।
ग़ौसे पाक, शहनशाहे बग़दाद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की वालिदए माजिदा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہَا ने ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को न सिर्फ़ सफ़र की इजाज़त दी बल्कि ख़र्च भी दिया । यहां वोह आ़शिक़ाने रसूल और आ़शिक़ाने ग़ौसे आ'ज़म ग़ौर फ़रमाएं जो दुन्यवी ता'लीम और