Ghous Pak Ka Ilmi Maqam

Book Name:Ghous Pak Ka Ilmi Maqam

आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का वा'ज़ो तब्लीग़

          ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने उ़लूमे ज़ाहिरी व बात़िनी को फैलाने  के लिये दर्सो तदरीस और तह़रीरी काम करने के साथ साथ इस्लाह़ी बयानात के ज़रीए़ भी दीने इस्लाम की बे शुमार ख़िदमात सर अन्जाम दीं । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के बयान का अन्दाज़ ऐसा प्यारा था कि कसीर लोग आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की त़रफ़ मुतवज्जेह होते गए । जो लोग आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के इजतिमाअ़ में आ जाते, वोह दरमियान में उठ कर न जाते बल्कि जब तक बयान जारी रहता, उस वक़्त तक ख़ामोशी से सुनते रहते क्यूंकि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के बयान में बहुत असर होता था । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने जब बयान की मह़फ़िलें शुरूअ़ कीं, तो सुनने वालों की कसरत की वज्ह से मद्रसे की जगह कम पड़ गई, लोगों ने आस पास की इ़मारतें ख़रीद कर वक़्फ़ कर दीं, बग़दाद के इ़लावा भी दूर दराज़ से लोग आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का बयान सुनने के लिये आने लगे । (بہجۃ الاسرار،ذکر علمہ و تسمیۃ ،،،الخ،ص۲۰۲-۲۰۳،ملتقطا) आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ हफ़्ते में 3 दिन बयान करते जिस में बे शुमार लोग और उ़लमा ह़ज़रात तशरीफ़ लाते । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के बयान को सुनने के लिये उ़मूमन सत्तर हज़ार से ज़ाइद लोग शरीक हुवा करते थे जिन में इ़राक़ के उ़लमा और सूफ़ियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن भी होते थे ।

(قلائد الجواہر ص۱۸ ملخصاً)

ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की मजलिस में 400 अफ़राद क़लम व सियाही की डब्बियां ले कर ह़ाज़िर होते थे और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के इरशादात को लिख कर मह़फ़ूज़ कर लेते थे । (قلائد الجواہر ص۱۸ملخصا) ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ उम्मत की इस्लाह़ का कैसा जज़्बा रखते थे, इस को बयान करते हुवे आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के शहज़ादे, ह़ज़रते शैख़ अ़ब्दुल वह्हाब رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने चालीस साल बयान फ़रमाया । शैख़ उ़मर कीमानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ का कोई बयान ऐसा नहीं जिस में लोग इस्लाम क़बूल न करते हों और चोर, डाकू और बडे़ बड़े गुनाहगार, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के हाथ पर तौबा न करते हों । (قلائد الجواہر ص۱۸)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

100 उ़लमा के सुवालात व जवाबात

          ह़ज़रते मुफ़र्रज बिन नब्हान शैबानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ मश्हूर हो गए, तो बग़दाद के ज़हीन तरीन सौ उ़लमाए किराम इस बात पर मुत्तफ़िक़ हुवे कि हर एक मुख़्तलिफ़ उ़लूमो फ़ुनून के बारे में अलग अलग सुवाल बनाए ताकि उन सुवालात के ज़रीए़ ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ को ला जवाब कर सकें । येह मन्सूबा बना कर सब के सब ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के दरबार में ह़ाज़िर हुवे । ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ मुफ़र्रज رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं भी उस वक़्त ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की बारगाह में ह़ाज़िर था, जब वोह उ़लमाए किराम आ कर बैठ गए, तो पीराने पीर, रौशन ज़मीर, ह़ज़रते शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी