Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa

Book Name:Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa

उन दोनों से इस बारे में पूछ लेना । कुफ़्फ़ारे क़ुरैश कहने लगे : बहुत अच्छा ! येह निशानी भी अच्छी है ।

          फिर ह़ुज़ूरे अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : फ़ुलां क़बीले के क़ाफ़िले पर मक़ामे तन्ई़म के पास मेरा गुज़र हुवा था, उस क़ाफ़िले में आगे आगे एक मिट्टी के रंग का ऊंट था जिस के ऊपर धारीदार दो बोरियां ग़ल्ले की रखी हुई थीं और एक ह़ब्शी भी उस पर सुवार था । उसी क़ाफ़िले में फ़ुलां शख़्स को सर्दी लग रही थी और वोह अपने ग़ुलाम से कम्बल मांग रहा था, येह क़ाफ़िला बहुत क़रीब पहुंच चुका है, सुब्ह़ सूरज त़ुलूअ़ होते वक़्त येह क़ाफ़िला यहां पहुंच जाएगा । चुनान्चे,

          सूरज निकलने से पहले कुछ लोग एक पहाड़ी पर आ बैठे और क़ाफ़िले का इन्तिज़ार करने लगे, कुछ लोग सूरज के इन्तिज़ार में मुक़र्रर किये गए ताकि वोह उस के निकलने पर ख़ुसूसी नज़र रखें । अचानक उन मुक़र्रर कर्दा आदमियों में से एक ने चीख़ कर कहा : लो ! वोह देखो ! सूरज निकल आया । इतने में किसी ने पुकारा : वोह देखो क़ाफ़िला भी आ चुका है । देखा तो वाके़ई़ क़ाफ़िले के आगे आगे मिट्टी के रंग का एक ऊंट था जिस पर धारीदार दो ग़ल्ले से भरी बोरियां रखी हुई थीं ।

          इस के बा'द बुध की दोपहर को क़ुरैश की एक जमाअ़त पहाड़ी पर बैठ कर उस क़ाफ़िले की आमद का इन्तिज़ार करने लगी जिस की आमद के बारे में ह़ुज़ूरे अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने बताया था कि वोह बुध के दिन दोपहर को पहुंचेगा । चुनान्चे, ठीक दोपहर के वक़्त वोह दूसरा क़ाफ़िला भी पहुंच गया और जिस शख़्स के गिरने की ख़बर दी गई थी, वाके़ई़ उस की कलाई टूटी हुई थी ।

          इस के बा'द कुछ लोग उस तीसरे क़ाफ़िले के इन्तिज़ार में बैठ गए जिस की आमद सूरज ग़ुरूब होने के वक़्त बताई गई थी । सूरज ग़ुरूब होने का वक़्त क़रीब हो गया और उस वक़्त तक क़ाफ़िला नहीं पहुंचा, रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने बारगाहे इलाही में दुआ़ फ़रमाई, दुआ़ क़बूल हुई और सूरज को रोक