Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa

Book Name:Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa

पर लोगों के आ'माल और आसमान पर उन आ'माल के लिये फ़िरिश्तों के येह झगड़े ता क़ियामत होते रहेंगे जिन्हें ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ आज आंखों से देख रहे हैं । इस ह़दीस की ताईद क़ुरआन की बहुत सी आयात कर रही हैं ।

(मिरआतुल मनाजीह़, 1 / 446, मुलख़्ख़सन)

          'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक ने रोज़े अज़ल (या'नी काइनात के पहले दिन) से रोज़े आख़िर तक जो कुछ हुवा और जो कुछ (हो रहा) है और जो कुछ होने वाला है, एक एक ज़र्रे का तफ़्सीली (Detailed) इ़ल्म अपने ह़बीबे अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को अ़त़ा फ़रमाया । हज़ार तारीकियों (अन्धेरों) में जो ज़र्रा या रेत का दाना पड़ा है, ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को उस का भी इ़ल्म है और फ़क़त़ (सिर्फ़) इ़ल्म ही नहीं बल्कि तमाम दुन्या भर और जो कुछ इस में क़ियामत तक होने वाला है, सब को ऐसा देख रहे हैं जैसा अपनी इस हथेली को । आसमानों और ज़मीनों में कोई ज़र्रा इन की निगाह से मख़्फ़ी (या'नी छुपा हुवा) नहीं बल्कि येह जो कुछ ज़िक्र किया गया है, इन के इ़ल्म के समुन्दरों में से एक छोटी सी नहर है, अपनी तमाम उम्मत को इस से ज़ियादा पहचानते हैं जैसा आदमी अपने पास बैठने वालों को (पहचानता है) और फ़क़त़ (सिर्फ़) पहचानते ही नहीं बल्कि उन के एक एक अ़मल, एक एक ह़रकत को देख रहे हैं, दिलों में जो ख़याल गुज़रता है, उस से आगाह  (बा ख़बर) हैं और फिर इन के इ़ल्म के वोह तमाम समुन्दर और तमाम मख़्लूक़ के उ़लूम मिल कर इ़ल्मे इलाही से वोह निस्बत नहीं रखते, जो एक ज़रा से क़त़रे को करोड़ समुन्दरों से (निस्बत है) । (फ़तावा रज़विय्या, 15 / 74, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हमारे प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने जब बैतुल मक़्दिस के बारे में मक्का शरीफ़ के चन्द लोगों की त़रफ़ से पूछे गए तमाम सुवालात के जवाबात अ़त़ा फ़रमा दिये, तो चूंकि वोह तो ह़ुज़ूरे अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के इस अ़ज़ीम मो'जिज़े पर ईमान लाने के बजाए अपनी