Book Name:Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa
इस्लामी इस रिसाले का लाज़िमी मुत़ालआ़ फ़रमाएं । येह रिसाला मक्तबतुल मदीना पर दस्तयाब होने के साथ साथ दा'वते इस्लामी की वेबसाइट www.dawateislami.net से भी पढ़ा जा सकता है । इस रिसाले के मुत़ालए़ की बरकत से आप जान सकेंगे : ٭ इजतिमाआ़त की अहम्मिय्यत । ٭ दा'वते इस्लामी और इजतिमाआ़त का एहतिमाम । ٭ हफ़्तावार इजतिमाअ़ क्या है ? ٭ इजतिमाअ़ का मुकम्मल जदवल । ٭ इजतिमाअ़ में शिर्कत करने के 13 फ़ज़ाइलो बरकात । ٭ हफ़्तावार इजतिमाअ़ से मुतअ़ल्लिक़ मर्कज़ी मजलिसे शूरा के मदनी मशवरों के मदनी फूल । ٭ ख़ैर ख़्वाह के 19 मदनी फूल । ٭ हफ़्तावार इजतिमाअ़ से मुतअ़ल्लिक़ एह़तियात़ों और मुफ़ीद मा'लूमात पर मुश्तमिल सुवाल जवाब । ٭ हफ़्तावार इजतिमाअ़ की शरई़ व तन्ज़ीमी एह़तियात़ें वग़ैरा । आइये ! तरग़ीब के लिये हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत की बरकत से दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता होने वाले एक आ़शिके़ रसूल की मदनी बहार सुनते हैं । चुनान्चे,
इसी माह़ोल ने अदना को आ'ला कर दिया देखो !
मुल्के अमीरे अहले सुन्नत के एक इस्लामी भाई की ज़िन्दगी ग़फ़्लत में गुज़र रही थी, इसी दौरान उन्हें आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी से वाबस्ता एक आ़शिक़े रसूल की सोह़बत मिली । उन की इनफ़िरादी कोशिश ने उन्हें दा'वते इस्लामी के क़रीब कर दिया और वोह मदनी माह़ोल से वाबस्ता हो गए । जब वोह पहली बार हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शरीक हुवे, तो उन्हों ने अव्वल ता आख़िर बयान सुनने की सआ़दत ह़ासिल की, येह सब कुछ उन्हें बहुत अच्छा लगा लेकिन जब इजतिमाअ़ में शरीक इस्लामी भाई एक आवाज़ में ज़िक्रुल्लाह में मसरूफ़ हुवे, तो उन्हें बे इख़्तियार हंसी आ गई कि येह लोग क्या पागलों की त़रह़ शुरूअ़ हो गए हैं ! (अल्लाह पाक की पनाह) । वोह इसी त़रह़ के वस्वसों का शिकार थे कि अचानक रूह़ानिय्यत का एक ऐसा झोंका आया कि वोह भी ज़िक्रुल्लाह करने में लग गए । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इस ज़िक्र व दुआ़ की बरकत से उन की त़बीअ़त में सन्जीदगी पैदा हो गई और