Book Name:Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa
पिछले गुनाहों से तौबा कर के नेकियों के रास्ते पर आ गए, उन्हों ने चेहरे पर दाढ़ी मुबारक और सर पर इ़मामा शरीफ़ का ताज सजा लिया । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ रमज़ानुल मुबारक में इजतिमाई़ ए'तिकाफ़ की बरकतें ह़ासिल करने की सआ़दत भी मुयस्सर आई, अब उन के वालिदे मोह़्तरम ने भी दाढ़ी शरीफ़ सजा ली है और तमाम घर वाले सिलसिलए आ़लिय्या क़ादिरिय्या रज़विय्या अ़त़्त़ारिय्या में दाख़िल हो चुके हैं ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! मे'राज की रात जब जिब्रईले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام बारगाहे रिसालत में ह़ाज़िर थे, आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने आसमान से एक आवाज़ सुनी, तो सरे अक़्दस आसमान की त़रफ़ उठाया और इरशाद फ़रमाया : आसमान का येह दरवाज़ा आज खोला गया है और आज से पहले कभी नहीं खोला गया । फिर उस दरवाज़े से एक फ़िरिश्ता उतरा, तो आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : येह फ़िरिश्ता आज उतरा है और आज से पहले कभी नहीं उतरा । (مسلم،کتاب صلاۃالمسافرین و قصرھا،باب فضل الفاتحۃ…الخ، ص۳۱۴، حدیث:۸۰۶)
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : आसमान के करोड़ों दरवाज़े हैं जिन से मुख़्तलिफ़ चीज़ें आती जाती हैं, एक दरवाज़ा वोह भी है जो सिर्फ़ मे'राज की रात ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के लिये खोला गया । (मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 138, मुलख़्ख़सन)
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! क़ुरबान जाइये ! प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की सुनने की अ़ज़ीमुश्शान क़ुव्वत पर ! कि ज़मीन पर रहते हुवे न सिर्फ़ आसमान की आवाज़ सुन ली बल्कि आसमानी दरवाज़े और उस से उतरने वाले फ़िरिश्ते को भी मुलाह़ज़ा फ़रमा लिया और सिर्फ़ येही नहीं बल्कि अपने अ़ज़ीमुश्शान इ़ल्मे ग़ैब के ज़रीए़ येह भी इरशाद फ़रमा दिया कि न तो येह दरवाज़ा आज से पहले कभी खोला गया है और न ही येह फ़िरिश्ता आज से पहले कभी ज़मीन पर उतरा ।