Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa

Book Name:Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa

मदनी फूल : नेक और जाइज़ काम में जितनी अच्छी निय्यतें ज़ियादा, उतना सवाब भी ज़ियादा ।

बयान सुनने की निय्यतें

٭ निगाहें नीची किये ख़ूब कान लगा कर बयान सुनूंगा । ٭ टेक लगा कर बैठने के बजाए इ़ल्मे दीन की ता'ज़ीम के लिये जहां तक हो सका दो ज़ानू बैठूंगा । ٭ اُذْکُرُوااللّٰـہَ، تُوبُوْا اِلَی اللّٰـہِ  صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْبِ، वग़ैरा सुन कर सवाब कमाने और सदा लगाने वालों की दिलजूई के लिये बुलन्द आवाज़ से जवाब दूंगा । ٭ बयान के बा'द ख़ुद आगे बढ़ कर सलाम व मुसाफ़ह़ा और इनफ़िरादी कोशिश करूंगा ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइये ! नबिय्ये पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के मुबारक ज़िक्र से बरकत ह़ासिल करने के लिये मे'राज शरीफ़ का ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़ सुनने की सआ़दत ह़ासिल करें । चुनान्चे,

मुख़्तसर वाक़िअ़ए मे'राज

          दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "फै़ज़ाने मे'राज" सफ़ह़ा नम्बर 13 ता 22 पर लिखा है : बिअ़्सत के ग्यारहवें साल, हिजरत से दो साल पहले, 27 रजबुल मुरज्जब, पीर शरीफ़ की सुहानी और नूर भरी रात है । (मिरआतुल मनाजीह़, मे'राज का बयान, पहली फ़स्ल, 8 / 135) और रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ नमाज़े इ़शा अदा फ़रमाने के बा'द अपनी चचाज़ाद बहन, ह़ज़रते उम्मे हानी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के घर आराम फ़रमा रहें हैं । (سیرة نبوية لابن هشام، ذكر الاسراء والمعراج، ٢/٣٨) कि दौलत ख़ानए अक़्दस की मुबारक छत खुली, ह़ज़रते सय्यिदुना जिब्राईले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام ह़ाज़िर हुवे और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को ह़ज़रते उम्मे हानी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के घर से मस्जिदे ह़राम में ला कर ह़त़ीमे का'बा में लिटा दिया । (فتح البارى، كتاب مناقب الانصار، باب المعراج، ٧/٢٥٦، تحت الحديث:٣٨٨٧)