Book Name:Iman Ki Salamti
तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान में है : इस आयत में कामिल ईमान वालों, शब बेदारी और इ़बादत करने वालों की दुआ़ का बयान है कि वोह अपनी नमाज़ों के बाद और आ़म अवक़ात में यूं अ़र्ज़ करते हैं : ऐ हमारे रब्बे करीम ! हम से जहन्नम का अ़ज़ाब फेर दे जो कि इन्तिहाई शदीद दर्दनाक है, बेशक उस का अ़ज़ाब गले का फन्दा है, बेशक जहन्नम बहुत ही बुरी ठेहरने और क़ियाम करने की जगह है । इस आयत से दो बातें मालूम हुईं : (1) अपनी इ़बादतो रियाज़त पर भरोसा करने की बजाए अल्लाह पाक की रह़मत और करम पर भरोसा करना चाहिए और उस की ख़ुफ़्या तदबीर से ख़ौफ़ज़दा रेहना चाहिए कि येह कामिल ईमान वालों का त़रीक़ा है । चुनान्चे, इमाम अ़ब्दुल्लाह बिन अह़मद नसफ़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : उन की इस दुआ़ से येह ज़ाहिर करना मक़्सूद है कि वोह कसरते इ़बादत के बा वुजूद अल्लाह पाक का ख़ौफ़ रखते हैं और उस की बारगाह में आ़जिज़ी, इन्केसारी और गिर्या व ज़ारी करते हैं । (2) अ़ल्लामा इस्माई़ल ह़क़्क़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : इस आयत में येह बताया गया है कि कामिल ईमान वाले, मख़्लूक़ के साथ अच्छा मुआ़मला करने और अल्लाह पाक की इ़बादत में ख़ूब कोशिश करने के बा वुजूद अल्लाह पाक के अ़ज़ाब से बहुत डरते हैं और अपने ऊपर से अ़ज़ाब फेर दिए जाने की गिर्या व ज़ारी के साथ इल्तिजाएं करते हैं, गोया कि वोह इन्तिहाई इ़बादत गुज़ारी और परहेज़गारी के बा वुजूद जब अल्लाह पाक की बारगाह में दुआ़ करते हैं, तो ख़ुद को गुनाहगारों में शुमार करते हैं और इस की वज्ह येह है कि वोह अपने आमाल को शुमार नहीं करते और अपने अह़वाल पर भरोसा नहीं करते । (सिरात़ुल जिनान, 7 / 56, روح البیان، الفرقان، تحت الآیة: ۶۴، ۶/۲۴۲)
ह़ज़रते अनस बिन मालिक رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं, रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : जो अल्लाह पाक से तीन बार जन्नत मांगे, तो जन्नत केहती है : इलाही ! इसे जन्नत में दाख़िल फ़रमा दे । और जो तीन बार जहन्नम से पनाह मांगे, तो जहन्नम केहती है : इलाही ! इसे आग से अमान दे दे । (حلیۃ الاولیاء ۶/۱۷۵)
ह़कीमुल उम्मत, मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जो रोज़ाना सुब्ह़ो शाम या दिन में एक बार या उ़म्र में एक बार तीन दफ़्आ़ येह कहे : اَللّٰھُمَّ ادْخِلْنِی الْجَنَّۃَ (ऐ अल्लाह पाक ! मुझे जन्नत में दाख़िला अ़त़ा फ़रमा) और तीन दफ़्आ़ येह केह ले : اَللّٰھُمَّ اَجِرْنِیْ مِنَ النَّارِ (ऐ अल्लाह पाक ! मुझे जहन्नम से बचा) । तो ख़ुद जन्नत उस के लिए दाख़िले की दुआ़ करेगी और ख़ुद दोज़ख़ अपने से पनाह की बारगाहे इलाही में अ़र्ज़ करेगी । (मिरआतुल मनाजीह़, 4 / 67)
ह़ज़रते मिस्अ़र رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बयान करते हैं : ह़ज़रते अ़ब्दुल आला तैमी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने फ़रमाया : जन्नत और दोज़ख़ इन्सानों की जानिब मुतवज्जेह हैं । जब कोई बन्दा जन्नत का सुवाल करता है, तो जन्नत केहती है : ऐ अल्लाह पाक ! इसे मुझ में दाख़िल फ़रमा । और जब बन्दा दोज़ख़