Iman Ki Salamti

Book Name:Iman Ki Salamti

दूंगा । ٭ इजतिमाअ़ के बाद ख़ुद आगे बढ़ कर सलाम व मुसाफ़ह़ा और इनफ़िरादी कोशिश करूंगा ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

        प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आज के बयान का मौज़ूअ़ है "ईमान की सलामती ।" इस बयान में हम सुनेंगे कि क़ुरआनो ह़दीस में ईमान पर साबित क़दम रेहने की किस क़दर ताकीद बयान की गई है । एक मुसलमान को ईमान की सलामती के लिए किस क़दर फ़िक्रमन्द रेहने की ज़रूरत है । हमारे बुज़ुर्गाने दीन ईमान की ह़िफ़ाज़त के लिए किस त़रह़ कुढ़ते थे । उन्हें ईमान के छिन जाने का कितना ख़ौफ़ रेहता था । ईमान के छिन जाने के मुतअ़ल्लिक़ फ़िक्रमन्द रेहना कितना ज़रूरी है । आख़िरत में नजात पाने के लिए क्या तदाबीर इख़्तियार की जाएं । इस के इ़लावा बाज़ ऐसे उमूर के  बारे में भी सुनेंगे जो ईमान की बरबादी का सबब बन सकते हैं वग़ैरा वग़ैरा । आइए ! सब से पेहले अल्लाह पाक के उन नेक बन्दों का क़ुरआनी वाक़िआ़ सुनते हैं जिन्हों ने अपना ईमान बचाने के लिए एक ग़ार में पनाहली।

अस्ह़ाबे कह्फ़ का वाक़िआ

काफ़ी अ़र्सा पेहले (बुह़ैरए अ़रब के किनारे मुल्के रूम की) ज़मीन पर "उफ़्सूस" नामी शहर (City) आबाद था, येह शहर बादशाह "दक़्यानूस" की सल्त़नत में आता था । दक़्यानूस ख़ुद भी ग़ैरे ख़ुदा की पूजा करता था और लोगों को भी इस पर मजबूर करता, जो इन्कार करता, उस पर ज़ुल्म करता और इ़ब्रतनाक सज़ा देता । अहले ईमान उस के ज़ुल्म से बचने के लिए छुपते फिरते और अपना ईमान बचाते । अहले ईमान की एक जमाअ़त को येह ख़दशा था कि एक न एक दिन दक़्यानूस उन तक पहुंच जाएगा और उन्हें ग़ैरे ख़ुदा की पूजा करने पर मजबूर करेगा, इस ख़त़रे के पेशे नज़र उन्हों ने येह शहर छोड़ने का फै़सला किया और वहां से चल पड़े । रास्ते में उन की मुलाक़ात एक चरवाहे से हुई जो अपना ईमान बचाने के लिए शहर से बाहर जा रहा था, उस के साथ एक कुत्ता भी था, वोह चरवाहा और उस का कुत्ता भी उन के साथ हो गए । रास्ते में मौजूद एक ग़ार को उन्हों ने अपना ठिकाना बना लिया और वहां आराम करने की ख़ात़िर लेट गए । ग़ार में लेटने के बाद उन के साथ कई अ़जीबो ग़रीब वाक़िआ़त हुवे : (1) येह लोग ग़ार में 309 साल तक सोते रहे, 309 साल के बाद जब अल्लाह पाक के ह़ुक्म से येह लोग बेदार हुवे, तो न सिर्फ़ इन के बदन सलामत थे बल्कि इन के कपड़े, पैसे, यहां तक कि इन का कुत्ता भी सलामत था । (2) वोह ग़ार में सो रहे थे लेकिन इस त़रह़ कि कोई उन्हें देखता, तो वोह येही समझता कि येह जाग रहे हैं । (3) अल्लाह पाक के ह़ुक्म से सूरज, निकलते वक़्त ग़ार से दाईं त़रफ़ हो जाता और ग़ुरूब होते वक़्त बाईं त़रफ़ हो जाता था, इस त़रह़ येह नेक लोग ग़ार के खुले ह़िस्से में लेटने के बा वुजूद सूरज की शुआ़ओं से मह़फ़ूज़ रहे ।