Book Name:Iman Ki Salamti
से बाज़ नहीं आते, गपशप की बैठकों से ख़ुद को नहीं बचाते, मज़ाक़ मस्ख़रियों और ग़ैर सन्जीदा ह़रकतों की आ़दतों से पीछा नहीं छुड़ाते । आह ! बुरी सोह़बत की नुह़ूसत ऐसी छाई है कि लम्ह़ा भर के लिए भी तन्हाई में यादे इलाही करने को जी नहीं चाहता । ईमान की ह़िफ़ाज़त की अगर्चे चाहत है, ताहम इस के लिए बुरे दोस्त छोड़ने बल्कि किसी क़िस्म की क़ुरबानी देने की हिम्मत नहीं । याद रखिए ! बुरा दोस्त ईमान के लिए बाइ़से नुक़्सान साबित हो सकता है । हमारे प्यारे प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने इ़ब्रत निशान है : आदमी अपने दोस्त के दीन पर होता है, उसे येह देखना चाहिए कि किस से दोस्ती करता है । (مسند امام احمد ، مسند ابی ہریرۃ، ۳/۱۶۸، حدیث :۸۰۳۴)
सोह़बत बहर ह़ाल असर दिखाती है, अच्छों की सोह़बत दुन्या व आख़िरत में ख़ुशबख़्ती का सबब बनती है और बुरों की दोस्ती दुन्या व आख़िरत में बदबख़्ती का सबब बनती है । जैसा कि ह़ज़रते अबू ज़र رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं, मैं ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ! एक शख़्स किसी क़ौम के साथ मह़ब्बत करता है मगर उन जैसे आमाल नहीं कर सकता ? फ़रमाया : ऐ अबू ज़र ! तुम उसी के साथ होगे जिस से तुम्हें मह़ब्बत है । मैं ने अ़र्ज़ की : मैं अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم से मह़ब्बत करता हूं । इरशाद फ़रमाया : ऐ अबू ज़र ! तुम जिस के साथ मह़ब्बत करते हो, उस के साथ ही रहोगे । (ابو داود،کتاب الادب،باب اخبار الرجل،۴/۴۲۹، حدیث:۵۱۲۶)
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के तह़्त फ़रमाते हैं : यानी किसी से दोस्ताना करने से पेहले उसे जांच लो कि अल्लाह (पाक और) रसूल (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم) का मुत़ीअ़ (यानी फ़रमां बरदार) है या नहीं । (मिरआतुल मनाजीह़, 6 / 599)
मालूम हुवा ! हमें अच्छों से मह़ब्बत और इन्ही की सोह़बत इख़्तियार करनी चाहिए, अच्छों की सोह़बत दुन्या में भी फ़ाएदेमन्द और आख़िरत में भी काम्याबी का बाइ़स है जबकि बुरे लोगों और बद मज़हबों की सोह़बत साह़िबे ईमान के लिए ज़हरे क़ातिल है ।
ईमान और कुफ़्र के तअ़ल्लुक़ से ज़रूरी मालूमात
याद रहे ! ईमान और कुफ़्र की ज़रूरी मालूमात का ह़ासिल करना बल्कि उन सब इस्लामी अ़क़ाइद का जानना ज़रूरी है कि जिन के ज़रीए़ आदमी सच्चा पक्का मुसलमान बने, यानी ऐसे अ़क़ाइद का जानना कि जिन का इन्कार करने से बन्दा इस्लाम से निकल जाए या गुमराह हो जाए । इन की मालूमात के लिए मक्तबतुल मदीना की छापी हुई इन 3 किताबों का मुत़ालआ़ बहुत फ़ाएदा देगी : (1) किताबुल अ़क़ाइद । (2) बुन्यादी अ़क़ाइद और मामूलाते अहले सुन्नत । (3) बहारे शरीअ़त की पेहली जिल्द का पेहला ह़िस्सा ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! मदनी मुज़ाकरों में अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ और जानशीने अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की सोह़बत यक़ीनन बहुत बड़ी नेमत और सलामतिए ईमान का