Book Name:Iman Ki Salamti
मुझे बस ख़ातिमा बिल ख़ैर की फ़िक्र दामनगीर है
ह़ज़रते इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इन्ही के बारे में नक़्ल फ़रमाते हैं : ह़ज़रते सुफ़्यान सौरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ब वक़्ते वफ़ात रोने और चिल्लाने लगे । लोगों ने दिलासा देते हुवे अ़र्ज़ की : या सय्यिदी ! घबराइए नहीं ! अल्लाह पाक की रह़मत पर नज़र रखिए । फ़रमाया : बुरे ख़ातिमे का ख़ौफ़ रुला रहा है, अगर ईमान पर ख़ातिमे की ज़मानत मिल जाए, तो फिर मुझे इस बात की परवा नहीं अगर्चे पहाड़ों (Mountains) के बराबर गुनाहों के साथ अल्लाह पाक से मुलाक़ात करूं । (احیاء العلوم، کتاب الخوف والرجاء، بیان فضیلۃ الخوف⋯الخ،۴/۲۱۱)
ह़ज़रते इब्ने अबू जमीला رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बयान करते हैं : एक शख़्स ने ह़ज़रते रिजा رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को अल वदाअ़ करते हुवे कहा : ऐ अबू मिक़्दाम ! अल्लाह पाक आप की ह़िफ़ाज़त फ़रमाए । आप ने फ़रमाया : ऐ भतीजे ! जान की ह़िफ़ाज़त की नहीं बल्कि ईमान की ह़िफ़ाज़त की दुआ़ दो । (حلیۃ الاولیاء، رجاء بن حیوۃ، ۵/۱۹۶، رقم:۶۸۰۹)
ईमान की ह़िफ़ाज़त के लिए लोगों से अ़लाह़िदगी
क़ूतुल क़ुलूब में है : एक शख़्स सब से अलग थलग रेहता था । ह़ज़रते अबू दर्दा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने उस के पास तशरीफ़ ला कर जब इस का सबब पूछा, तो उस ने कहा : मेरे दिल में येह ख़ौफ़ बैठ गया है कि कहीं ऐसा न हो मेरा ईमान छिन जाए और मुझे इस की ख़बर तक न हो । (قوت القلوب، الفصل الثانی الثلاثون، شرح مقامات الیقین⋯الخ، ۱/۳۸۸ملخصا)
ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! ह़ुज़ूर सय्यिदी ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ औलिया के सरदार हैं मगर आप ने ई़द के दिन अश्आ़र कहे जिन का तर्जमा येह है : लोग केह रहे हैं कि कल ई़द है ! कल ई़द है ! और सब ख़ुश हैं लेकिन मैं तो जिस दिन इस दुन्या से अपना ईमान सलामत ले कर गया, मेरे लिए तो वोही दिन ई़द होगा । (सिरात़ुल जिनान, 1 / 263)
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि ( औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْھِم को इस बात का डर लगा रेहता था कि कहीं हम से हमारा ईमान न छिन जाए ।٭ कसरते इ़बादत के बा वुजूद अल्लाह पाक की नाराज़ी वाले कामों और बातों से बचा करते थे । ٭ दूसरों से भी ईमान पर ख़ातिमे की दुआ़ का कहा करते थे । ٭ ह़िफ़ाज़ते ईमान के लिए आंसू बहाया करते थे । ٭ कसरत से ह़िफ़ाज़ते ईमान के लिए ग़ैर ज़रूरी मेल जोल से बचा करते थे । लिहाज़ा हमें भी चाहिए कि इन अल्लाह वालों के नक़्शे क़दम पर चलें, अपनी ज़बान की ह़िफ़ाज़त करें, फ़ुज़ूल व ग़ैर ज़रूरी मेल जोल से बचें, नेकियों का शौक़ अपने दिल में पैदा करें, अपने गुनाहों पर आंसू बहाएं और गुनाहों से सच्ची तौबा करें, अल्लाह पाक से दुन्या व आख़िरत में आ़फ़िय्यतो नजात की दुआ़ करें और इस के लिए अ़मली कोशिशें भी जारी रखें ।