Book Name:Iman Ki Salamti
वाबस्ता रेह कर ज़ैली ह़ल्के़ के 12 दीनी कामों में बढ़ चढ़ कर ह़िस्सा लीजिए । ज़ैली ह़ल्के़ के 12 दीनी कामों में रोज़ाना का एक दीनी काम "फ़ज्र के लिए जगाना" भी है । इस दीनी काम का रिसाला भी मन्ज़रे आ़म पर आ चुका है, इस का मुत़ालआ़ कीजिए और इस में दिए गए त़रीक़ए कार के मुत़ाबिक़ इस दीनी काम को ख़ूब बढ़ाने की कोशिश भी कीजिए ।
٭ اَلْحَمْدُ لِلّٰہ फ़ज्र के लिए जगाने की बरकत से नमाज़े तहज्जुद की सआ़दत मिल सकती है । ٭ नमाज़ की ह़िफ़ाज़त होती है । ٭ मस्जिद की पेहली सफ़ में तक्बीरे ऊला के साथ नमाज़े फ़ज्र की अदाएगी हो सकती है । ٭ नेकी की दावत देने का सवाब भी कमाया जा सकता है । ٭ दावते इस्लामी की नेक नामी होगी । ٭ फ़ज्र के लिए जगाने वाला बार बार मुसलमानों को ह़ज और मीठा मदीना देखने की दुआ़ देता है, अल्लाह पाक ने चाहा, तो येह दुआ़एं उस के ह़क़ में भी क़बूल होंगी । ٭ फ़ज्र के लिए जगाने में पैदल चलने की बरकत से सेह़त भी अच्छी होगी । ٭ मुसलमानों को नमाज़े फ़ज्र के लिए जगाना सुन्नते मुस्त़फ़ा है । ٭ मुसलमानों को नमाज़े फ़ज्र के लिए जगाना सुन्नते फ़ारूक़ी भी है । चुनान्चे, अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ नमाज़े फ़ज्र के लिए लोगों को जगाते हुवे मस्जिद तशरीफ़ लाते थे । (طبقات کبریٰ،ذکر استخلاف عمر،۳/۲۶۳ مفہوماً) आइए ! तरग़ीब के लिए एक वाक़िआ़ सुनते हैं । चुनान्चे,
फ़ज्र के लिए जगाने की बरकत से फै़ज़ाने मदीना के लिए ज़मीन मिल गई
एक इस्लामी भाई आ़शिक़ाने रसूल की दीनी तह़रीक दावते इस्लामी के क़ाफ़िले के साथ एक शहर में गए, नमाज़े फ़ज्र के लिए जगाते जा रहे थे कि अचानक एक घर से एक मॊडर्न नौजवान उन के साथ शामिल हुवा और उस ने
फ़ज्र की नमाज़ मस्जिद में जमाअ़त से अदा की । बाद में उस नौजवान के वालिद, क़ाफ़िले वाले आ़शिक़ाने रसूल से मिलने आए । येह साह़िबे सरवत थे । इन्हों ने आ कर बताया : फ़ज्र के लिए जगाने की बरकत से इन का ना फ़रमान, मॊडर्न, बे नमाज़ी बेटा, पंजवक़्ता नमाज़ पढ़ने लगा है । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ इस मॊडर्न नौजवान के वालिद ने मुतास्सिर हो कर उस शहर में फै़ज़ाने मदीना के लिए ज़मीन अ़त़िय्या कर दी ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! "शर्ह़ुस्सुदूर" में लिखा है : बाज़ उ़लमाए किराम फ़रमाते हैं : बुरे ख़ातिमे के चार अस्बाब हैं । (1) नमाज़ में सुस्ती । (2) शराब नोशी । (3) वालिदैन की ना फ़रमानी । (4) मुसलमानों को तक्लीफ़ देना । (शर्ह़ुस्सुदूर, स. 27)
अमीरे अहले सुन्नत, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ फ़रमाते हैं : बुरी सोह़बत ईमान के लिए बहुत ख़त़रनाक है मगर अफ़्सोस ! लोग बुरे दोस्तों