Book Name:Iman Ki Salamti
के बजाए, इसे ज़िक्रो दुरूद और सिर्फ़ ज़रूरी बातों के लिए इस्तिमाल करें । ٭ ईमान को कुफ़्र के तमाम ख़त़रात से बचाएं । ٭ अपने आप को ईमान ज़ाएअ़ करने वाले तमाम कामों से बचाएं । ٭ आख़िरी दम तक ईमान पर इस्तिक़ामत के लिए नमाज़ व रोज़े और शरीअ़त की पाबन्दी करें । ٭ ईमान पर इस्तिक़ामत के लिए अल्लाह पाक और उस के प्यारे ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की रिज़ा वाले काम करते रहें । ٭ ईमान पर इस्तिक़ामत के लिए अल्लाह पाक और रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की नाराज़ी व ना फ़रमानी से हर दम बचते रहें । अल्लाह पाक क़ुरआने पाक में इरशाद फ़रमाता है :
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ حَقَّ تُقٰتِهٖ وَ لَا تَمُوْتُنَّ اِلَّا وَ اَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ(۱۰۲) (پ۴،آل عمران:۱۰۲)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरो ! जैसा उस से डरने का ह़क़ है और ज़रूर तुम्हें मौत सिर्फ़ इस्लाम की ह़ालत में आए ।
इस आयते मुबारका के तह़्त "तफ़्सीरे नूरुल इ़रफ़ान" में है : इस से मालूम हुवा ! इस्लाम पर ख़ातिमा होने का एतिबार है । अगर उ़म्र भर मोमिन रहे, मरते वक़्त ग़ैर मुस्लिम हो जाए, तो वोह अस्ली ग़ैर मुस्लिम की त़रह़ है । इसी मफ़्हूम की एक दूसरी आयते मुबारका के तह़्त मुफ़्ती साह़िब लिखते हैं : मालूम हुवा ! मुसलमान होना कमाल नहीं बल्कि मुसलमान मरना कमाल है । अल्लाह पाक हम सब को ईमान पर मौत नसीब फ़रमाए । (पा. 1, अल बक़रह, तह़्तुल आयत : 132)
अल्लाह पाक के आख़िरी नबी, मक्की मदनी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने इ़ब्रत निशान है : اِنَّمَا الْاَعْمَالُ بِالْخَوَاتِیْمِ आमाल का दारो मदार ख़ातिमे पर है । (بخاری،کتاب القدر،باب العمل بالخواتم، ۴/۲۷۴،حدیث ۶۶۰۷) अल्लाह पाक हमें सलामतिए ईमान से उठाए और नेक लोगों के साथ हमारा ह़श्र फ़रमाए ।
اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم
रब्बे करीम की नाराज़ी वाला काम न हो जाए
ह़ज़रते इमाम ह़सन बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से पूछा गया : आप का क्या ह़ाल है ? फ़रमाया : जिस की किश्ती (Boat) दरया के दरमियान जा कर टूट जाए, उस के तख़्ते बिखर जाएं और हर शख़्स हिचकोले खाता तख़्तों पर नज़र आए, तो उस का क्या ह़ाल होगा ? अ़र्ज़ की गई : बेह़द परेशान कुन । फ़रमाया : मेरा भी येही ह़ाल है । एक बार आप ऐसे उदास हुवे कि कई साल तक हंसी न आई, लोग आप को ऐसे देखते जैसे कोई कै़दी तन्हाई में है और उसे सज़ाए मौत सुनाई जाने वाली है । आप से इस बेचैनी व परेशानी का सबब पूछा गया कि आप इतनी इ़बादतो रियाज़त और मुजाहिदात के बा वुजूद फ़िक्रमन्द क्यूं रेहते हैं ? फ़रमाया : मुझे हर वक़्त येह ख़दशा लाह़िक़ रेहता है कि कहीं मुझ से कोई ऐसा काम सरज़द न हो जाए जिस की वज्ह से अल्लाह पाक नाराज़ हो जाए और फ़रमा दे कि तुम जो चाहे करो मगर मेरी रह़मत तुम्हारे शामिले ह़ाल न होगी । बस इसी वज्ह से मैं अपनी जान पिघला रहा हूं । (کیمیائے سعادت،رکن چہارم:منجیات ،فصل اسباب سوء خاتمت، ۲/ ۸۳۲)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد