Iman Ki Salamti

Book Name:Iman Ki Salamti

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! दामने इस्लाम से वाबस्ता होने वालों को हमारे प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने भी बारहा इस्लाम ही के नूर में रेहने, कुफ़्र की तारीकियों से बचने और कुफ़्र से हमेशा बेज़ार रेहने की तरग़ीब दिलाई । चुनान्चे, फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم है : तीन ख़स्लतें ऐसी हैं, जिस में येह होंगी, वोह इन के सबब ईमान की मिठास (Sweetness) पा लेगा : (1) जिस के नज़दीक अल्लाह पाक और उस के रसूल (صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم) दूसरों से ज़ियादा मह़बूब हों । (2) जो किसी बन्दे से मह़ब्बत करे और उस की मह़ब्बत सिर्फ़ अल्लाह पाक के लिए हो और (3) वोह जो अल्लाह पाक के उसे कुफ़्र से निकालने के बाद कुफ़्र में लौटने को उसी त़रह़ ना पसन्द करे जिस त़रह़ आग में डाले जाने को ना पसन्द  करता है । (مسلم، کتاب الایمان، باب بیان خصال من اتصفالخ، ص ۴۷، حدیث:۱۶۵)

        प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! हमें हर वक़्त नेक आमाल इख़्तियार करने के साथ साथ ख़ौफ़ज़दा रेहते हुवे जहन्नम से पनाह भी मांगते रेहना चाहिए, इस के भी बहुत सारे फ़ज़ाइलो बरकात हैं । अल्लाह पाक ने क़ुरआने पाक में कई मक़ामात पर जहन्नम से पनाह मांगने वालों का भी ज़िक्र फ़रमाया है । चुनान्चे, अल्लाह पाक फ़रमाता है :

اَلَّذِیْنَ یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَاۤ اِنَّنَاۤ اٰمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَ قِنَا عَذَابَ النَّارِۚ(۱۶)     ۳،آل عمران:۱۶)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : वोह जो केहते हैं : ऐ हमारे रब ! हम ईमान लाए हैं, तो तू हमारे गुनाह मुआ़फ़ फ़रमा और हमें दोज़ख़ के अ़ज़ाब से बचा ले ।

          और फ़रमाता है :

الَّذِیْنَ  یَذْكُرُوْنَ  اللّٰهَ  قِیٰمًا  وَّ  قُعُوْدًا  وَّ  عَلٰى  جُنُوْبِهِمْ  وَ  یَتَفَكَّرُوْنَ  فِیْ  خَلْقِ  السَّمٰوٰتِ  وَ  الْاَرْضِۚ-رَبَّنَا  مَا  خَلَقْتَ  هٰذَا  بَاطِلًاۚ-سُبْحٰنَكَ  فَقِنَا  عَذَابَ  النَّارِ(۱۹۱) )    پ۴،ال عمران۱۹۱(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : जो खड़े और बैठे और पहलूओं के बल लेटे हुवे अल्लाह को याद करते हैं और आसमानों और ज़मीन की पैदाइश में ग़ौर करते हैं । ऐ हमारे रब ! तू ने येह सब बेकार नहीं बनाया, तू पाक है, तू हमें दोज़ख़ के अ़ज़ाब से बचा ले ।

          और फ़रमाता है :

وَ الَّذِیْنَ یَبِیْتُوْنَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًا وَّ قِیَامًا(۶۴) وَ الَّذِیْنَ یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ ﳓ اِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًاۗۖ(۶۵) اِنَّهَا سَآءَتْ مُسْتَقَرًّا وَّ مُقَامًا(۶۶) )    پ۱۹،فرقان:۶۴تا۶۶(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और वोह जो अपने रब के लिए सजदे और क़ियाम की ह़ालत में रात गुज़ारते हैं और वोह जो अ़र्ज़ करते हैं : ऐ हमारे रब ! हम से जहन्नम का अ़ज़ाब फेर दे । बेशक उस का अ़ज़ाब गले का फन्दा है, बेशक वोह बहुत ही बुरी ठेहरने और क़ियाम करने की जगह है ।

(यानी दोज़ख़ उस के लिए अ़ज़ाब की जगह है जिस का वोह ठिकाना है । दोज़ख़ में रेहने वाले फ़िरिश्ते या जन्नती लोग जो दोज़ख़ से गुनहगार मोमिनों को निकालने जाएंगे, उन के लिए अ़ज़ाब की जगह नहीं) ।