Iman Ki Salamti

Book Name:Iman Ki Salamti

          दक़्यानूस को जब येह ख़बर पहुंची कि चन्द लोगों ने ग़ैरे ख़ुदा की पूजा से बचने के लिए ग़ार को अपना ठिकाना बनाया है, तो उस ने ह़ुक्म दिया कि ग़ार के मुंह पर एक दीवार बना दी जाए ताकि वोह कभी ग़ार से निकल न सकें और उस में सिसक सिसक कर दम तोड़ दें । दक़्यानूस ने जिसे दीवार तामीर करने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी, वोह नेक आदमी था, वोह इस फै़सले को बदलवा तो नहीं सकता था, लिहाज़ा उस ने ग़ार को अपना ठिकाना बनाने वालों के नाम और कुछ तफ़्सीलात एक तख़्ती पर लिख कर उसे सन्दूक़ (Box) में रखवाया और उस सन्दूक़ को दीवार की बुन्याद में मह़फ़ूज़ करवा दिया फिर येह अस्ह़ाबे कह्फ़ 309 साल के बाद एक नेक व परहेज़गार मोमिन बादशाह "बैदरूस" के दौरे ह़ुकूमत में अल्लाह पाक के ह़ुक्म से बेदार हुवे । تفسیر خازن،پ ۱۵، الکھف، تحت الآیۃ:۱۸، ۳/ ۱۹۸ تا ۲۰۳ ملخصا) अस्ह़ाबे कह्फ़ यानी ग़ार वालों का वाक़िआ़ क़ुरआने करीम के पारह 15, सूरतुल कह्फ़ की आयत 9 में कुछ यूं है :

اَمْ حَسِبْتَ اَنَّ اَصْحٰبَ الْكَهْفِ وَ الرَّقِیْمِۙ-كَانُوْا مِنْ اٰیٰتِنَا عَجَبًا(۹)پ۱۵، الکہف:۹(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : क्या तुम्हें मालूम हुवा कि पहाड़ी ग़ार और जंगल के किनारे वाले वोह हमारी निशानियों में से एक अ़जीब निशानी थे ।

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि अस्ह़ाबे कह्फ़ को अपने ईमान की ह़िफ़ाज़त की किस क़दर फ़िक्र थी कि उन्हों ने दक़्यानूस बादशाह की त़रफ़ से दी जाने वाली ग़ैरे ख़ुदा की पूजा की दावत ठुकरा दी और उस के ज़ुल्मो जब्र से बचने और ईमान पर साबित क़दम रेहने के लिए ग़ार में चले गए । येही वज्ह है कि अल्लाह पाक का उन पर करम हुवा, रह़मते इलाही उन की त़रफ़ मुतवज्जेह हुई, तीन सदियों से ज़ियादा अ़र्से तक वोह अल्लाह पाक की ह़िफ़्ज़ो अमान में रहे, बदलते ज़माने ने उन पर कोई असर न किया, उन के ह़क़ में गोया वक़्त रुक गया, 309 साल के बाद जब वोह बेदार हुवे, तो उसी त़रह़ जवान, तरो ताज़ा और ज़िन्दगी से भरपूर थे और यूं अल्लाह पाक ने उन्हें अपनी अ़जीब निशानी क़रार दिया ।

इस वाक़िए़ से क्या क्या सीखने को मिला ?

          मुफ़स्सिरे क़ुरआन, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ अस्ह़ाबे कह्फ़ के वाक़िए़ पर लिखते हैं : इस (वाक़िए़) से दो मस्अले मालूम हुवे : एक येह कि करामते औलिया बरह़क़ है । अस्ह़ाबे कह्फ़ बनी इसराईल के औलिया हैं, उन का कुछ खाए, पिए बिग़ैर इतनी मुद्दत ज़िन्दा रेहना करामत है । दूसरी बात येह मालूम हुई ! वली की करामत सोते हुवे भी ज़ाहिर हो सकती है और मौत के बाद भी ज़ाहिर हो सकती है । इन औलिया के जिस्मों को मिट्टी का न खाना, येह भी करामते औलिया है । (नूरुल इ़रफ़ान, स. 269)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد