Book Name:Safr-e-Miraaj Or Ilm-e-Ghaib-e-Mustafa
दिखा कर वापस भी तशरीफ़ ले आए, अभी तक सितारे उसी त़रह़ चमक रहे थे, उन के साए भी न बदले थे । (शर्ह़े कलामे रज़ा, स. 696)
अल्लाह की इ़नायत मरह़बा ! मे'राज की अ़ज़मत मरह़बा !
बुराक़ की क़िस्मत मरह़बा ! बुराक़ की सुरअ़त मरह़बा !
अक़्सा की शौकत मरह़बा ! नबियों की इमामत मरह़बा !
आक़ा की रिफ़्अ़त मरह़बा ! आसमां की सियाह़त मरह़बा !
मकीने ला मकां की अ़ज़मत मरह़बा ! चश्माने नुबुव्वत मरह़बा !
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने सुब्ह़ जब क़ुरैश के सामने मे'राज के वाक़िए़ को बयान किया, तो वोह बहुत ह़ैरान हुवे और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को مَعَاذَ اللّٰہ झूटा साबित करने के लिये इम्तिह़ान के त़ौर पर सुवालात शुरूअ़ कर दिये ।
ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : वोह सुवालात भी फ़ुज़ूल थे, मसलन येह कि बैतुल मक़्दिस में सुतून (Pillar) कितने हैं ? सीढ़ियां (Stairs) कितनी हैं ? मिम्बर किस त़रफ़ है ? ज़ाहिर है कि येह चीज़ें तो बार बार देखने पर भी याद नहीं रहतीं, तो एक बार देखने पर याद कैसे रहतीं ? क़ुरैश के चन्द लोगों ने कहा : अ़र्श व कुर्सी की बातें जो आप बयान कर रहे हैं, उन की तो हम को ख़बर नहीं, बैतुल मक़्दिस हम ने देखा हुवा है, लिहाज़ा वहां की निशानियां हमें बताएं ।
(मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 159, मुलख़्ख़सन)
(लिहाज़ा जब बैतुल मक़्दिस की कैफ़िय्यत पूछी गई तो) नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को कुछ तरद्दुद हुवा क्यूंकि अगर्चे आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ बैतुल मक़्दिस में दाख़िल हुवे थे लेकिन आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने उस की कैफ़िय्यत के मुतअ़ल्लिक़ गहरी नज़र नहीं फ़रमाई थी और फिर वोह रात भी तारीक (या'नी अन्धेरी) थी । अल्लाह पाक ने ह़ज़रते जिब्रईले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام को ह़ुक्म फ़रमाया, तो उन्हों ने अपने परों (Wings) पर बैतुल मक़्दिस को उठा