Book Name:Hazrat Ibraheem Ki Qurbaniyain
अहम फ़रीजे़ को भी कमा ह़क़्क़ुहू (या'नी जैसा कि उस का ह़क़ है) अदा नहीं कर पाते । हमारे मुआशरे की एक ता'दाद ऐसी है जिन की दीनी मा'लूमात का ह़ाल येह है कि एक ही घर में रहने वाले मुख़्तलिफ़ मालिके निसाब अफ़राद पूरे घर की त़रफ़ से एक ही बकरा क़ुरबान कर देते हैं और क़ुरबानी के लिये कैसा जानवर होना चाहिये ? या किस ऐ़ब की वज्ह से क़ुरबानी नहीं होगी ? उन्हें मा'लूम ही नहीं होता और वोह क़ुरबानी करने के बा'द इस ख़ुश फ़हमी में मुब्तला रहते हैं कि हम ने भी सुन्नते इब्राहीमी पर अ़मल कर लिया और हमारा वाजिब अदा हो गया, ह़ालांकि उन के ज़िम्मे वाजिब की अदाएगी बाक़ी रहती है । इस लिये क़ुरबानी के अह़कामात का इ़ल्म होना बहुत ज़रूरी है ।
क़ुरबानी में पेश आने वाले मसाइल के मुतअ़ल्लिक़ शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त़्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के 48 सफ़ह़ात पर मुश्तमिल रिसाले "अब्लक़ घोडे़ सुवार" का मुत़ालआ बहुत ही मुफ़ीद रहेगा । हर इस्लामी बहन को चाहिये कि क़ुरबानी करने से पहले कम अज़ कम एक बार तो ज़रूर इस रिसाले का मुत़ालआ फ़रमा लें, اِنْ شَآءَ اللّٰہ इ़ल्मे दीन का ढेरों ढेर ज़ख़ीरा हाथ आएगा और क़ुरबानी के बहुत से मसाइल से भी आगाही होगी । क़ुरबानी के मुतअ़ल्लिक़ मज़ीद मा'लूमात के लिये मक्तबतुल मदीना की मत़बूआ किताब "बहारे शरीअ़त" जिल्द 3, ह़िस्सा 15 से क़ुरबानी के मसाइल का मुत़ालआ कीजिये या दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत से रुजूअ़ कीजिये ।
क़ुरबानी की खालें दा'वते इस्लामी को दीजिये
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! اَلْحَمْدُلِلّٰہ عَزَّوَجَلَّ ! आशिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी, ख़िदमते दीन के कमो बेश 104 शो'बों में सुन्नतों की ख़िदमत में मश्ग़ूल है । इन तमाम शो'बाजात को चलाने के लिये माहाना करोड़ों रुपये के अख़राजात होते हैं । हमें भी ह़ुसूले सवाब की ख़ात़िर दा'वते