Book Name:Hazrat Ibraheem Ki Qurbaniyain
رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا और ह़ज़रते इस्माई़ल عَلَیْہِ السَّلَام ज़िन्दा रहे, यहां तक कि ह़ज़रते इस्माई़ल عَلَیْہِ السَّلَام जवान हो गए और शिकार करने लगे, तो शिकार के गोश्त और ज़मज़म के पानी पर गुज़र बसर होने लगी फिर क़बीलए जुरहुम के कुछ लोग अपनी बकरियों को चराते हुवे इस मैदान में आए और पानी का चश्मा देख कर ह़ज़रते हाजरा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا की इजाज़त से यहां आबाद हो गए और इस क़बीले की एक लड़की से ह़ज़रते इस्माई़ल عَلَیْہِ السَّلَام की शादी भी हो गई और रफ़्ता रफ़्ता यहां एक आबादी हो गई ।
(अ़जाइबुल क़ुरआन मअ़ ग़राइबुल क़ुरआन, स. 145, मुलख़्ख़सन)
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! इस वाक़िए़ से हमें येह मा'लूम हुवा कि ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام अपने रब्बे करीम के बहुत ही इत़ाअ़त गुज़ार और फ़रमां बरदार थे कि (आप ने रिज़ाए इलाही की ख़ात़िर अपना) वोह बच्चा जिस को बड़ी दुआओं के बा'द बुढ़ापे में पाया था, जो आप की आंखों का नूर और दिल का सुरूर था, फ़ित़री त़ौर पर ह़ज़रते इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام उस को कभी अपने से जुदा नहीं कर सकते थे मगर अल्लाह عَزَّوَجَلَّ की रिज़ा की ख़ात़िर अपने प्यारे फ़रज़न्द और ज़ौजा को "वादिये बत़्ह़ा" की उस सुन्सान (या'नी वीरान) जगह पर छोड़ आए जहां सर छुपाने को दरख़्त का पत्ता और प्यास बुझाने को पानी का एक क़त़रा भी नहीं था, न वहां कोई यारो मददगार, न कोई मूनिस व ग़म ख़्वार । हम में से कोई होता, तो शायद इस के तसव्वुर ही से उस के सीने में दिल धड़कने लगता बल्कि शिद्दते ग़म से दिल फट जाता मगर ह़ज़रते इब्राहीम ख़लीलुल्लाह عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام, अल्लाह पाक का येह ह़ुक्म सुन कर न फ़िक्रमन्द हुवे, न एक लम्ह़े के लिये सोच बिचार में पड़े, न रन्जो ग़म से निढाल हुवे बल्कि फ़ौरन ही अपने रब्बे करीम का ह़ुक्म बजा लाने के लिये बीवी और बच्चे को ले कर मुल्के शाम से सरज़मीने मक्का में चले गए और वहां बीवी