Book Name:Hazrat Ibraheem Ki Qurbaniyain
बच्चे को छोड़ कर मुल्के शाम वापस आ गए । अल्लाहु अक्बर ! इस जज़्बए इत़ाअ़त शिआरी और जोशे फ़रमां बरदारी पर हमारी जां क़ुरबान !
मीठी मीठी इस्लामी बहनो ! ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम عَلٰی نَبِیِّنَاوَعَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام की सारी ज़िन्दगी अल्लाह की राह में क़ुरबानियां देते हुवे गुज़री । जब भी ह़ुक्मे ख़ुदावन्दी आया, तो आप ने ता'मील करते हुवे कभी घर वालों को शिर्क से रोका, तो कभी क़ौम को नेकी की दा'वत दे कर उन की मुख़ालफ़त झेली, कभी बादशाहे वक़्त को तौह़ीद व रिसालत का पैग़ामे ह़क़ सुनाया, तो कभी अपनी क़ौम के हाथों आतश कदे में जलना पड़ा, बड़ी चाहतों और मुरादों के बा'द बुढ़ापे में ह़ासिल होने वाले शीर ख़्वार बेटे को उस की वालिदा के साथ लक़ोदक़ (या'नी वीराने) बियाबान और चटयल मैदान (या'नी वोह मैदान जहां कोई सायादार दरख़्त तक न हो) में रब्बे करीम के ह़ुक्म से बिग़ैर किसी दुन्यवी सहारे के अकेला छोड़ दिया, तो कभी उसी बेटे की नर्म व नाज़ुक गरदन पर अपने हाथों से छुरी चलाने तक गुरेज़ न किया, अल ग़रज़ ! आप عَلَیْہِ السَّلَام की तमाम ज़िन्दगी इत़ाअ़ते इलाही में बसर होती नज़र आती है । आप عَلَیْہِ السَّلَام की दास्ताने ह़यात का एक एक गोशा रिज़ाए इलाही में राज़ी रहने का दर्स देता है । आप عَلَیْہِ السَّلَام का हर ह़ाल में राज़ी ब रिज़ाए इलाही रहने का जज़्बा सद करोड़ मरह़बा ! काश ! कि हम भी आप عَلَیْہِ السَّلَام की त़रह़ अपने रब्बे करीम की रिज़ा में राज़ी रहने वाली बन जाएं, काश ! कि हम भी इत़ाअ़ते इलाही से मा'मूर ज़िन्दगी बसर करने वाली बन जाएं ।
ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام राहे ख़ुदा में अपनी औलाद तक क़ुरबान करने को तय्यार हो गए, ऐ काश ! हम अपना कुछ वक़्त ही राहे ख़ुदा में सर्फ़ करने वाली बन जाएं । ह़ज़रते सय्यिदुना इब्राहीम عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام की ह़याते त़य्यिबा से हमें येह भी दर्स मिलता है कि हम पर कितनी ही बड़ी मुसीबत क्यूं न आ जाए और कैसी ही बड़ी आज़माइश में क्यूं न मुब्तला हो जाए