Book Name:Jhoot Ki Badboo
फ़िरिश्ते उस पर ला'नत करते हैं, उन के साथ 80 हज़ार फ़िरिश्ते भी ला'नत भेजते हैं और 80 ख़त़ाएं उस के ज़िम्मे लिखी जाती हैं, जिन में सब से कम उह़ुद पहाड़ की मिस्ल है । ( بستان الواعظین وریاض السامعین ص٦١)
फ़तावा रज़विय्या शरीफ़ में है : झूट और ग़ीबत बात़िनी गन्दगियां हैं व लिहाज़ा झूटे के मुंह से ऐसी बदबू निकलती है कि ह़िफ़ाज़त के फ़िरिश्ते उस वक़्त उस के पास से दूर हट जाते हैं । जैसा कि ह़दीस में इरशाद हुवा है और इसी त़रह़ एक बदबू की निस्बत (या'नी उस के बारे में) रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने ख़बर दी कि येह उन के मुंह की बदबू है जो मुसलमानों की ग़ीबत करते हैं और हमें जो झूट या ग़ीबत की बदबू मह़सूस नहीं होती, उस की वज्ह येह है कि हम उस के आ़दी हो गए, हमारी नाकें उस से भरी हुई हैं । जैसे चमड़ा पकाने वालों के मह़ल्ले में जो रहता है, उसे उस की बदबू से ईज़ा (या'नी तक्लीफ़) नहीं होती, दूसरा आए तो उस से नाक न रखी जाए । मुसलमान इस नफ़ीस फ़ाइदे (या'नी बेहतरीन नतीजे) को याद रखें और अपने रब्बे (करीम) से डरें, झूट और ग़ीबत तर्क करें (या'नी छोड़ दें) । क्या مَعَاذَ اللّٰہ मुंह से पाख़ाना निकलना किसी को पसन्द होगा ? बात़िन (या'नी दिल) की नाक खुले तो मा'लूम हो कि झूट और ग़ीबत में पाख़ाने से बदतर सड़ांद (या'नी बदबू) है । (ग़ीबत की तबाहकारियां, स. 135)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आप ने सुना कि झूटे के मुंह से ऐसी सख़्त बदबू निकलती है कि रह़मते इलाही के फ़िरिश्ते एक मील दूर हो जाते हैं मगर हमें येह बदबू इस लिये मह़सूस नहीं होती कि झूट की कसरत के सबब हर त़रफ़ इस की बदबू के भबके उठ रहे होते हैं और हमारी नाक (Nose) अट चुकी है । इस को यूं समझिये कि जब गटर की सफ़ाई की जा रही हो, तो आ़म शख़्स उस की बदबू के बाइ़स वहां खड़ा नहीं रह सकता मगर भंगी (Sweeper) को कुछ भी पता नहीं चलता, इस लिये कि उस की नाक उस गन्दगी की बदबू से अट चुकी होती है । लिहाज़ा हमें इस बुरी आ़दत से और झूटों की सोह़बत से बचना चाहिये क्यूंकि झूट बोलना ऐसी बुरी आ़दत है कि इस की वज्ह से ईमान