Book Name:Hirs kay Nuqsanaat or Qana_at ki Barkaat
आख़िरत के लिये हैं, तो अच्छी । इस लिये दराज़ (या’नी लम्बी) उ़म्र चाहना कि अल्लाह (करीम) की इ़बादत ज़ियादा कर लूं, अच्छा है । (मिरआतुल मनाजीह़, 7 / 86)
मा’लूम हुवा कि ह़िर्स के अच्छा और बुरा होने का दारो मदार उसी चीज़ पर है कि जिस के ह़ुसूल की ह़िर्स मत़लूब है । अगर तो इस का तअ़ल्लुक़ त़ाआत व इ़बादात से हो, तो ऐसी ह़िर्स हरगिज़ मज़मूम (या’नी बुरी) नहीं नीज़ येह भी पता चला कि येह मालो दौलत के साथ ख़ास नहीं बल्कि इस की नुह़ूसत कई उमूर में मौजूद हो सकती है । ह़रीस इन्सान इन्तिहाई क़ाबिले रह़म होता है क्यूंकि उस पर हर लम्ह़ा अपनी ह़िर्स को अ़मली जामा पहनाने का भूत सुवार रहता है और फिर आगे चल कर येही मूज़ी मरज़ उसे ग़ुलामी की ज़न्जीरों में जकड़ देता और ख़ूब रुस्वा करवाता है । चुनान्चे,
ह़ज़रते सय्यिदुना फ़ुज़ैल बिन इ़याज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं कि ह़िर्स येह है कि इन्सान कभी इस चीज़ की, कभी उस चीज़ की त़लब में रहता है यहां तक कि वोह सब कुछ ह़ासिल कर लेना चाहता है और इस मक़्सद के ह़ुसूल के लिये उस का वासित़ा मुख़्तलिफ़ लोगों से पड़ता है । जब वोह उस की ज़रूरतें पूरी करेंगे, तो (अपनी मर्ज़ी के मुत़ाबिक़) उस की नाक में नकील डाल कर जहां चाहेंगे, ले जाएंगे, वोह उस से अपनी इ़ज़्ज़त चाहेंगे ह़त्ता कि ह़रीस रुस्वा हो जाएगा और इसी मह़ब्बते दुन्या के बाइ़स जब भी वोह उन के सामने से गुज़रेगा, तो उन्हें सलाम करेगा और जब वोह बीमार होंगे, तो इ़यादत करेगा मगर उस के येह तमाम अफ़्आल ख़ुदा की रिज़ा के लिये नहीं होंगे ।
( مکاشفۃ القلوب، الباب الثالث و الثلاثون، فی فضل القناعۃ، ص۱۲۴ بتغیر قلیل )
आइये ! ह़िर्स की आफ़तों पर मबनी तीन रिवायात सुनते और नसीह़त के मदनी फूल ह़ासिल करते हैं । चुनान्चे,
ह़िर्स के मुतअ़ल्लिक़ तीन फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
1. इरशाद फ़रमाया : लोग कहते हैं या तुम में से कोई कहने वाला कहता है कि लालची इन्सान ज़ालिम से ज़ियादा धोकेबाज़ होता है ह़ालांकि