Hirs kay Nuqsanaat or Qana_at ki Barkaat

Book Name:Hirs kay Nuqsanaat or Qana_at ki Barkaat

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा रिवायात में उन लोगों के लिये ढारस है जो क़लील वसाइल व कम आमदनी का रोना रोने के बजाए ब क़दरे ज़रूरत रिज़्क़ व माल पर क़नाअ़त करते हुवे अल्लाह पाक की रिज़ा पर राज़ी रहते हैं और ज़बान पर शिक्वए रन्जो अलम लाने से बचते हैं । यक़ीनन येह सब इसी क़नाअ़त के दाइमी ख़ज़ाने की बरकात हैं और येह भी पता चला कि हमारे प्यारे आक़ा, मदीने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने भी अपने अहलो इ़याल के लिये सिर्फ़ ब क़दरे ज़रूरत रिज़्क़ अ़त़ा होने की दुआ मांगी, लिहाज़ा हमें भी चाहिये कि कम वसाइल पर क़नाअ़त कर के इस की बरकतें ह़ासिल करें ।

          हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن  सरापा क़नाअ़त हुवा करते थे, उन के नज़दीक माल की कोई अहम्मिय्यत न थी, येही वज्ह है कि वोह ह़ज़रात अल्लाह पाक की अ़त़ा पर राज़ी रहते हुवे निहायत सादगी से ज़िन्दगी गुज़ारा करते थे । आइये ! आप की तरग़ीब व तह़रीस के लिये क़नाअ़त पसन्दी का एक इन्तिहाई दिलचस्प और नसीह़त आमोज़ वाक़िआ अ़र्ज़ करता हूं । चुनान्चे,

एक वलिय्ये कामिल का अन्दाज़े क़नाअ़त

        दावते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की 1548 सफ़ह़ात पर मुश्तमिल किताब "फै़ज़ाने सुन्नत" जिल्द अव्वल, सफ़ह़ा 491 पर शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दावते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ फ़रमाते हैं : अपने दौर के जय्यिद आलिम, ह़ज़रते सय्यिदुना ख़लील बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ख़िदमत में अहवाज़ से अमीर (यानी ह़ाकिम) सुलैमान बिन अ़ली का नुमाइन्दा ख़ुसूसी ह़ाज़िर हो कर अ़र्ज़ गुज़ार हुवा : शहज़ादों की तालीमो तरबिय्यत के लिये ह़ाकिम ने आप को शाही दरबार में त़लब फ़रमाया है । ह़ज़रते सय्यिदुना ख़लील बसरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने सूखी रोटी का टुक्ड़ा दिखाते हुवे जवाब इरशाद फ़रमाया : मेरे पास जब तक येह सूखी रोटी का टुक्ड़ा मौजूद है मुझे दरबारे शाही की चाकरी की कोई ह़ाजत नहीं ।