Book Name:Hirs kay Nuqsanaat or Qana_at ki Barkaat
سُبْحٰنَ اللہ आप ने सुना कि अल्लाह पाक के नेक बन्दों की सोच किस क़दर उ़म्दा हुवा करती थी कि अगर उन्हें जाइज़ त़रीक़े से भी ज़रूरत से ज़ाइद माल वग़ैरा मिल रहा होता, तो परेशान हो जाते और ह़त्तल इमकान माले दुन्या को अपने आप से दूर रखते । आइये ! इस ज़िमन में शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ की मदनी सोच और माले दुन्या से बे रग़बती के बारे में भी सुनते हैं ।
अमीरे अहले सुन्नत की दुन्या से बे रग़बती
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा’वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त्त़ार क़ादिरी रज़वी ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के कुर्ते पर सीने की त़रफ़ दो जेबें होती हैं । मिस्वाक शरीफ़ रखने के लिये आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ अपने उल्टे हाथ (या’नी दिल की जानिब) वाली जेब के बराबर एक छोटी सी जेब बनवाते हैं । इस का सबब आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने येह इरशाद फ़रमाया कि मैं चाहता हूं कि येह आलए अदाए सुन्नत (या’नी मिस्वाक) मेरे दिल से क़रीब रहे । इस के बर अ़क्स दुन्यवी दौलत से बे रग़बती का अन्दाज़ा इस बात से लगाइये कि आप دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ को देखा गया है कि जब कभी ज़रूरतन जेब में रक़म रखनी पड़े, तो सीधे हाथ वाली जेब में रखते हैं । इस की ह़िक्मत दरयाफ़्त करने पर फ़रमाया : मैं उल्टे हाथ वाली जेब में रक़म इस लिये नहीं रखता कि दुन्यवी दौलत दिल से लगी रहेगी और येह मुझे गवारा नहीं, लिहाज़ा मैं ज़रूरत पड़ने पर रक़म सीधी जानिब वाली जेब में ही रखता हूं । (फ़िक्रे मदीना, स. 121)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! हमें भी चाहिये कि बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہِ تَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के नक़्शे क़दम पर चलते हुवे ग़ैर ज़रूरी माल का ख़याल अपने दिल से निकाल कर क़नाअ़त की दौलते ला ज़वाल से ख़ुद को माला माल करें, यक़ीन कीजिये कि अगर क़नाअ़त की दौलत हमें नसीब हो गई, तो ह़िर्से माल की आफ़त से ख़ुद बख़ुद नजात ह़ासिल हो जाएगी ।