Bahan Bhaiyon Ke Sath Husne Sulook

Book Name:Bahan Bhaiyon Ke Sath Husne Sulook

बहनों को ख़ुश रखने का एहतिमाम करते हैं ? क्या हम उन्हें अपने यहां होने वाली तक़रीबात में बुलाते हैं या नहीं ? क्या हम उन के ह़ुक़ूक़ को पामाल तो नहीं करते ? बहर ह़ाल हमें चाहिये कि इस्लामी ता'लीमात को मशअ़ले राह बनाते हुवे अपने भाई बहनों के मुआमले में शफ़्क़त व मेहरबानी जैसा किरदार अदा करें और अपने आप को ऐसे माह़ोल से वाबस्ता रखें कि जहां पर हमें रिश्तेदारों के ह़ुक़ूक़ की बजा आवरी का भरपूर ज़ेहन दिया जाता हो ।

          याद रखिये ! भाई बहनें एक दूसरे के दुख दर्द के मदावा होते हैं, मुश्किलात में एक दूसरे का सहारा बनते हैं लेकिन बसा अवक़ात बहन, भाई या बहनें एक दूसरे के ख़िलाफ़ हो जाती हैं और आपस में एक दूसरी को त़ा'ने देती और उन की दिल आज़ारी करती दिखाई देती हैं फिर जब कोई नुक़्सान पहुंचता है, तो अपने किये पर शर्मिन्दा होती हैं । आइये ! इस बारे में एक इ़ब्रतनाक वाक़िआ सुनिये । चुनान्चे,

अन्धी लड़की

        दो सगी बहनों ने अपनी औलाद के रिश्ते आपस में त़ै किये, लड़की की नज़र कमज़ोर थी जिस की वज्ह से वोह चश्मा लगाती थी । कुछ अ़र्से बा'द दोनों बहनों के दरमियान इख़्तिलाफ़ात ने सर उठाया, बात यहां तक पहुंची कि एक बहन दूसरी से कहने लगी : मैं अपने सह़ीह़ सलामत बेटे की शादी तुम्हारी अन्धी बेटी से नहीं कर सकती । येह सुन कर दूसरी बहन के दिल पर गोया तीरों की बरसात हो गई कि ऐब निकालने वाली कोई और नहीं उस की सगी बहन थी, बहर ह़ाल त़ा'ना देने वाली, रिश्ता तोड़ कर जा चुकी थी । दूसरी त़रफ़ जब वोह घर पहुंची, तो उसे ख़याल आया कि लोहे के पाइप नीचे सेह़न में रखे हुवे हैं, उन्हें छत पर मुन्तक़िल कर देती हूं, उस ने अपने बेटे को भी इस काम में शामिल कर लिया, ख़ुदा की करनी ऐसी हुई कि अचानक लोहे का पाइप उस के हाथ से छूटा और सीधा बेटे की आंख पर जा लगा, उस की आंख पपोटे समेत बाहर निकल पड़ी, उस के दिल पर क़ियामत गुज़र गई और उस के ज़ेहन में अपनी सगी बहन को कहे गए अल्फ़ाज़ गूंजने लगे कि "मैं अपने सह़ीह़ सलामत