Ramazan Ki Baharain

Book Name:Ramazan Ki Baharain

सुनने की तरकीब फ़रमाइये । अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के तख़रीज शुदा रसाइल से भी ह़स्बे मौक़अ़ दर्स दिया जा सकता है । अल्लाह पाक घर दर्स के साथ साथ दीगर मदनी कामों में भी बढ़ चढ़ कर ह़िस्सा लेने की तौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ

          लिहाज़ा आप भी घर दर्स देने की निय्यत फ़रमा लीजिये । आइये ! तरग़ीब के लिये एक मदनी बहार मुलाह़ज़ा फ़रमाइये । चुनान्चे,

डाइजेस्ट पढ़ने की शाइक़ा

      बाबुल मदीना की इस्लामी बहन को डाइजेस्ट वग़ैरा पढ़ने का जुनून की ह़द तक शौक़ था । उन की ज़िन्दगी में अ़मल की बहार कुछ यूं आई । उन के बड़े भाई जो दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता थे, वोह मुख़्तलिफ़ रसाइल ले कर घर आते जिन्हें पढ़ कर उन्हें मदनी माह़ोल से उन्सिय्यत हो गई । आहिस्ता आहिस्ता दा'वते इस्लामी के इजतिमाआत में शिर्कत की बरकत से मदनी माह़ोल से भी वाबस्ता हो गईं और उन्हों ने बे पर्दगी से तौबा की और मदनी बुरक़अ़ सजाने, नमाज़ों की पाबन्दी करने का मदनी अ़ज़्म कर लिया और नेकियां करने में मसरूफ़ हो गईं मगर दा'वते इस्लामी के मदनी काम करने से कतराती थीं । उन के भाईजान बारहा उन्हें घर में दर्से फै़ज़ाने सुन्नत देने की तरग़ीब दिलाते मगर वोह दर्स देने से घबरातीं, इसी त़रह़ सिलसिला चलता रहा । एक दिन भाईजान सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ से वापसी पर "भयानक ऊंट" नामी एक रिसाला लाए । रिसाले का नाम बहुत दिलचस्प था, उन्हों ने उस रिसाले को पढ़ना शुरूअ़ किया और जब इन अल्फ़ाज़ को पढ़ा "हमारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर लोगों ने पथ्थर बरसाए मगर फिर भी आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने दीन की तब्लीग़ फ़रमाई और लोग हम पर फूल निछावर करें फिर भी हम जी चुराएं, हम पंखों में, क़ालीनों पर बैठ कर भी तब्लीग़े दीन न करें !"