Ramazan Ki Baharain

Book Name:Ramazan Ki Baharain

येह महीना रुख़्सत होता है, तो अश्कबार आंखों से इसे अल वदाअ़किया जाता है ।

          शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत, बानिये दा'वते इस्लामी, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना अबू बिलाल मुह़म्मद इल्यास अ़त्त़ार क़ादिरी रज़वी    ज़ियाई دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने माहे रमज़ानुल मुबारक की आमद पर ख़ुशी और मसर्रत का इज़्हार करने, रब्बे करीम की इस अ़ज़ीम ने'मत पर इज़्हारे शुक्र करने और इस माहे ग़ुफ़रान (या'नी बख़्शिश व मग़फ़िरत का महीना) की अ़ज़मत व अहम्मिय्यत उजागर करने के लिये येह ख़ूब सूरत और प्यारा कलाम लिखा :

मरह़बा ! सद मरह़बा !

मरह़बा ! सद मरह़बा ! फिर आमदे रमज़ान है

खिल उठे मुरझाए दिल ताज़ा हुवा ईमान है

हम गुनाहगारों पे येह कितना बड़ा एह़सान है

या ख़ुदा ! तू ने अ़त़ा फिर कर दिया रमज़ान है

तुझ पे सदके़ जाऊं रमज़ां तू अ़ज़ीमुश्शान है

कि ख़ुदा ने तुझ में ही नाज़िल किया क़ुरआन है

अब्रे रह़मत छा गया है और समां है नूर नूर

फ़ज़्ले रब से मग़फ़िरत का हो गया सामान है

हर घड़ी रह़मत भरी है, हर त़रफ़ हैं बरकतें

माहे रमज़ां रह़मतों और बरकतों की कान है

आ गया रमज़ां इ़बादत पर कमर अब बांध लो

फै़ज़ ले लो जल्द कि दिन तीस का मेहमान है

आसियों की मग़फ़िरत का ले कर आया है पयाम

झूम  झाओ  मुजरिमो !  रमज़ां  महे  ग़ुफ़रान  है