Book Name:Allah Walon Kay Ikhtiyarat
उड़ना, पानी पर चलना वग़ैरा अफ़्आ़ल कि आ़म त़ौर पर आदमी न तो हवा में उड़ सकता है और न ही पानी पर चल सकता है । (फै़ज़ाने मज़ाराते औलिया, स. 46)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! यक़ीनन औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن को अल्लाह पाक ने हवा में उड़ने की त़ाक़त अ़त़ा फ़रमाई है, जो बिग़ैर परों के ब आसानी हवा में परवाज़ करते हुवे एक जगह से दूसरी जगह पहुंच सकते हैं । अल्लाह पाक के बा'ज़ नेक बन्दे ऐसे भी होते हैं जो समुन्दरों और दरयाओं को भी अपना फ़रमां बरदार बना लेते हैं और पानी पर बिला ख़ौफ़ इस त़रह़ चल सकते हैं जैसे ख़ुश्की पर चलते हैं । चुनान्चे,
बिग़ैर किश्ती के दरया पार कर लिया
रिवायतों में आता है कि जंगे फ़ारस में ह़ज़रते सा'द बिन अबी वक़्क़ास رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ इस्लामी लश्कर के सिपह सालार थे । दौराने सफ़र रास्ते में दरयाए दिजला को पार करने की ज़रूरत पेश आ गई और किश्तियां मौजूद नहीं थीं । आप ने लश्कर को दरया में चल देने का ह़ुक्म दे दिया और ख़ुद सब से आगे आगे येह दुआ़ पढ़ते हुवे दरया पर चलने लगे : نَسْتَعِیْنُ بِاللہِ وَنَتَوَکَّلُ عَلَیْہِ وَحَسْبُنَا اللہُ وَنِعْمَ الْوَکِیْلُ وَلَاحَوْلَ وَلَا قُوَّۃَ اِلَّابِاللہِ الْعَلِیِّ الْعَظِیْمِ (तर्जमा : हम अल्लाह पाक से मदद त़लब करते हैं और उसी पर भरोसा करते हैं, अल्लाह पाक हमें काफ़ी है और वोह क्या ही अच्छा है काम बनाने वाला और नहीं है गुनाहों से बचने की त़ाक़त और नेकी करने की क़ुव्वत मगर अल्लाह पाक की त़रफ़ से जो सब से बुलन्द अ़ज़मत वाला है) । लोग आपस में बिला झिझक एक दूसरे से बातें करते हुवे, घोड़ों वाले घोड़ों पर सुवार, ऊंटों वाले ऊंटों पर सुवार, पैदल चलने वाले पैदल अपने अपने सामानों के साथ दरया पर इस त़रह़ चलने लगे जिस त़रह़ मैदानों में क़ाफ़िले गुज़रते रहते हैं । (دلائل النبوۃ لابی نعیم، الفصل التاسع و العشرون، عبور سعد بن ابی وقاص...الخ، جزء ۲،ص۳۴۱-۳۴۲۔رقم: ۵۲۲ملخصاً)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! मा'लूम हुवा ! अल्लाह पाक के नेक बन्दे उस की दी हुई त़ाक़त से पानी और हवा पर भी चल सकते हैं और येह ह़ज़रात ऐसी शान वाले होते हैं कि इन की दुआ़एं रद्द नहीं होतीं, जब येह बारगाहे ख़ुदावन्दी में हाथ उठा कर बारिश की दुआ़ फ़रमा दें, तो अल्लाह पाक इन की दुआ़ओं की बरकत से बहुत ज़ोर की बारिश बरसा कर प्यासों को सैराब और खेतों और बाग़ात को सर सब्ज़ो शादाब फ़रमा देता है । जैसा कि :
मन्क़ूल है कि एक बार सैहून शरीफ़ (बाबुल इस्लाम) और उस के क़रीबी अ़लाक़ों में बारिशों का सिलसिला बिल्कुल ख़त्म हो गया, यहां तक कि खाने की कोई चीज़ दूर दूर तक दिखाई न देती, नहरें ख़ुश्क हो गईं, कुंवें सूख गए, पानी का मिलना दुश्वार हो गया । आख़िरे कार अहले अ़लाक़ा इकठ्ठे हो कर ह़ज़रते ला'ल शहबाज़ क़लन्दर सय्यिद मुह़म्मद उ़स्मान मरवन्दी काज़िमी क़ादिरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की बारगाह में ह़ाज़िर हो कर फ़रयाद करने लगे ।