Book Name:Allah Walon Kay Ikhtiyarat
इ़ल्मिय्या" भी है जिस ने इस्लाह़े उम्मत के मुक़द्दस जज़्बे के तह़्त ख़ालिस इ़ल्मी, तह़क़ीक़ी और इशाअ़ती काम का बेड़ा उठाया है । क़ुरआनो ह़दीस की अहम मा'लूमात लोगों तक पहुंचाना, अ़वाम की आसानी और फ़ाइदे के लिये बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की अ़रबी कुतुब को आसान उर्दू तर्जमे के साथ पेश करना, दर्से निज़ामी या'नी आ़लिम कोर्स के त़लबा के लिये दर्सी किताबों की मुश्किलात को ह़ल करना, सह़ाबा व अहले बैते किराम رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھُم और औलियाए इ़ज़्ज़ाम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की सीरते मुबारका पर कुतुबो रसाइल लिखना, आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की तसानीफ़ को मौजूदा दौर के तक़ाज़ों के मुत़ाबिक़ ह़त्तल इमकान आसान अन्दाज़ में छापना अल मदीनतुल इ़ल्मिय्या के तह़रीरी कारनामों में शामिल है ।
अल मदीनतुल इ़ल्मिय्या की इन्ही कोशिशों की ता'रीफ़ करते हुवे शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ ने एक मौक़अ़ पर फ़रमाया : "पहले बयान तय्यार करना किस क़दर दुश्वार था इस का मुझे तजरिबा है, अब तो अल मदीनतुल इ़ल्मिय्या ने अपनी किताबों में मुबल्लिग़ीन को बहुत सारा मवाद दे दिया है, आप ह़ज़रात भी अल मदीनतुल इ़ल्मिय्या की तमाम कुतुब पढ़ने की निय्यत कर लीजिये ।"
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ मुल्क व बैरूने मुल्क से वक़्तन फ़-वक़्तन आने वाले उ़लमा व मुफ़्तियाने किराम भी अल मदीनतुल इ़ल्मिय्या के तह़रीरी काम से ख़ुश हो कर अपनी दुआ़ओं से नवाज़ते हैं । अल्लाह करीम मजलिसे अल मदीनतुल इ़ल्मिय्या को मज़ीद तरक़्क़ियां और बरकतें अ़त़ा फ़रमाए ।
اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
क़ब्रिस्तान की ह़ाज़िरी के मदनी फूल
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आइये ! शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "163 मदनी फूल" से क़ब्रिस्तान की ह़ाज़िरी के मदनी फूल सुनते हैं । चुनान्चे, ٭ नबिय्ये करीम, रऊफ़ुर्रह़ीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़रमाने अ़ज़ीम है : मैं ने तुम को क़ब्रों की ज़ियारत से मन्अ़ किया था लेकिन अब तुम क़ब्रों की ज़ियारत करो क्यूंकि येह दुन्या में बे रग़बती का सबब और आख़िरत की याद दिलाती है । ( اِبن ماجہ،۲ /۲۵۲،حدیث۱۵۷۱) ٭ क़ुबूरे मुस्लिमीन (या'नी मुसलमानों की क़ब्रों) की ज़ियारत (करना) सुन्नत और मज़ाराते औलियाए किराम व शुहदाए इ़ज़्ज़ाम की ह़ाज़िरी सआ़दत बर सआ़दत (या'नी भलाई ही भलाई) और उन्हें ईसाले सवाब मन्दूब (या'नी पसन्दीदा) व सवाब । (फ़तावा रज़विय्या, 9 / 532) ٭ (वलिय्युल्लाह के मज़ार शरीफ़ या) किसी भी मुसलमान की क़ब्र की ज़ियारत को जाना चाहे, तो मुस्तह़ब येह है कि पहले अपने मकान पर (ग़ैर मकरूह वक़्त में) दो रक्अ़त नफ़्ल पढ़े, हर रक्अ़त में सूरतुल फ़ातिह़ा के बा'द एक बार आयतुल