Book Name:Allah Walon Kay Ikhtiyarat
जाती है । अल्लाह पाक हमें औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن का बा अदब रखे और बे अदबी से बचाए ।
اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के इख़्तियारात से मुतअ़ल्लिक़ मज़ीद वाक़िआ़त सुनने से पहले वली की ता'रीफ़ सुन लीजिये । चुनान्चे, "तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" में है : वलिय्युल्लाह वोह है जो फ़राइज़ की अदाएगी से अल्लाह पाक का क़ुर्ब ह़ासिल करे, वोह अल्लाह पाक की इत़ाअ़त (या'नी फ़रमां बरदारी) में मश्ग़ूल रहे और उस का दिल अल्लाह पाक के नूरे जलाल की मा'रिफ़त (या'नी पहचान) में मुस्तग़रक़ (या'नी डूबा हुवा) हो, जब देखे, क़ुदरते इलाही के दलाइल को देखे, जब सुने, अल्लाह पाक की आयतें ही सुने, जब बोले, तो अपने रब्बे करीम की सना (या'नी ता'रीफ़) ही के साथ बोले, जब ह़रकत करे, इत़ाअ़ते इलाही में ह़रकत करे और जब कोशिश करे, तो उसी काम में कोशिश करे जो क़ुर्बे इलाही का ज़रीआ़ हो, अल्लाह पाक के ज़िक्र से न थके और चश्मे दिल (या'नी दिल की आंख) से ख़ुदा पाक के इ़लावा किसी और को न देखे । येह सिफ़त औलिया (رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن) की है, बन्दा जब इस ह़ाल पर पहुंचता है, तो अल्लाह पाक उस का मददगार होता है । (सिरात़ुल जिनान, 4 / 344, मुलख़्ख़सन) आइये ! अब करामत की ता'रीफ़ भी सुनते हैं । चुनान्चे,
करामत की ता'रीफ़
सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद अमजद अ़ली आ'ज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ "बहारे शरीअ़त" में करामत की ता'रीफ़ बयान करते हुवे फ़रमाते हैं : वली से जो ख़िलाफे़ आ़दत (आ़दत के उलट) बात सादिर (वाके़अ़) हो, उस को "करामत" कहते हैं ।
(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा अव्वल, 1 / 58, बित्तग़य्युर क़लील)
इसी क़िस्म की चीज़ें अगर अम्बिया عَلَیْہِمُ السَّلَام से ए'लाने नुबुव्वत से पहले ज़ाहिर हों, तो "इरहास", ए'लाने नुबुव्वत के बा'द हों, तो "मो'जिज़ा" कहलाती हैं, अगर आ़म मोमिनीन से इस क़िस्म की चीज़ों का ज़ुहूर हो, तो उस को "मऊ़नत" कहते हैं और किसी ग़ैर मुस्लिम से कभी उस की ख़्वाहिश के मुत़ाबिक़ इस क़िस्म की चीज़ ज़ाहिर हो जाए, तो उस को "इस्तिदराज" कहा जाता है । (करामाते सह़ाबा, स. 36) ख़िलाफे़ आ़दत बात से मुराद वोह काम है जो आ़म त़ौर पर हर किसी इन्सान से ज़ाहिर न होता हो, मसलन हवा में