Allah Walon Kay Ikhtiyarat

Book Name:Allah Walon Kay Ikhtiyarat

या नहीं ? इधर ह़ज़रते सय्यिदुना जुनैद बग़दादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने भी नूरे फ़िरासत से उस की ह़ालत मुलाह़ज़ा फ़रमा ली । चुनान्चे, जब वोह मुरीद आया और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ से एक सुवाल पूछा । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने जवाब इरशाद फ़रमाया : कैसा जवाब चाहता है ? लफ़्ज़ों में या मा'नों में ? बोला : दोनों त़रह़ । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने फ़रमाया : अगर लफ़्ज़ों में जवाब चाहता है, तो सुन ! अगर मुझे आज़माने से पहले ख़ुद को आज़मा और परख लेता, तो तुझे मुझे आज़माने की ज़रूरत पेश न आती और न ही तू यहां मुझे आज़माने आता । मा'नवी जवाब येह है कि मैं ने तुझे मन्सबे विलायत से बर त़रफ़ किया । येह फ़रमाना था कि उस मुरीद का चेहरा काला हो गया । वोह आहो ज़ारी करते हुवे अ़र्ज़ गुज़ार हुवा : ह़ुज़ूर ! यक़ीन की ख़ुशी मेरे दिल से जाती रही है । फिर तौबा की और फ़ुज़ूल बातों पर भी शर्मिन्दगी का इज़्हार किया । तो ह़ज़रते सय्यिदुना जुनैद बग़दादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने इरशाद फ़रमाया : तू नहीं जानता कि अल्लाह पाक के वली, अल्लाह पाक के राज़ों की ह़िफ़ाज़त करने वाले होते हैं, तुझ में उन की चोट बरदाश्त करने की सलाह़िय्यत नहीं । (कश्फ़ुल मह़जूब, स. 137)

          बहर ह़ाल हमें चाहिये कि किसी वली को हरगिज़ न आज़माएं, न किसी वली से बद ज़न हों और न ही दिल में किसी वलिय्युल्लाह की दुश्मनी रखें । सरदारे अम्बिया, मह़बूबे किब्रिया صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ फ़रमाते हैं : अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है : مَنْ عَادَى لِي وَلِيًّا فَقَدْ آذَنْتُهُ بِالْحَرْبِ जिस ने मेरे किसी वली से दुश्मनी की, मैं उसे ए'लाने जंग देता हूं । (بخاری،کتاب الرقاق،باب التواضع... الخ ،۴/ ۲۴۸،حدیث:۶۵۰۲) अल्लाह पाक हमारे दिलों में हमेशा अपने औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن का अदबो एह़तिराम क़ाइम रखे और इन की शान में बे अदबी करने वालों की सोह़बत से मह़फ़ूज़ फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ  

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! अल्लाह पाक के नेक बन्दों से दुश्मनी रखना, उन की शान में बे अदबी करना, उन्हें त़रह़ त़रह़ से सताना, उन के माल व जाएदाद पर क़ब्ज़ा कर के उन्हें तक्लीफ़ पहुंचाना, सरासर नादानी और दुन्या व आख़िरत की बरबादी का सबब है । उन ह़ज़रात की शानो अ़ज़मत तो ऐसी बुलन्दो बाला है कि अगर किसी मुआ़मले में सब लोग उन के ख़िलाफ़ गवाही देने के लिये मुत्तह़िद हो जाएं मगर अल्लाह पाक उन की सच्चाई व अमानत दारी की गवाही के लिये ज़रूर कोई सबब पैदा फ़रमा देता है, जिस से उन की शानो अ़ज़मत और इ़ज़्ज़त व शोहरत लोगों के दिलों में मज़ीद उजागर हो जाती है । जैसा कि :

ज़मीन ने गवाही दी

        एक शख़्स ने ह़ाकिमे शहर की अ़दालत में ह़ज़रते बाबा फ़रीदुद्दीन मस्ऊ़द गंजे शकर رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ज़मीन पर मिल्किय्यत का नाजाइज़ दा'वा कर दिया । चुनान्चे,