Allah Walon Kay Ikhtiyarat

Book Name:Allah Walon Kay Ikhtiyarat

औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن को जो त़ाक़तें ज़िन्दगी में ह़ासिल होती हैं, वोह दुन्या से ज़ाहिरी पर्दा करने के बा'द न सिर्फ़ बाक़ी रहती हैं बल्कि उन में मज़ीद इज़ाफ़ा हो जाता है क्यूंकि औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن, अल्लाह करीम की इ़नायात से अपने मज़ारात में न सिर्फ़ ज़िन्दा होते हैं बल्कि अपने मज़ारात की ज़ियारत के लिये आने वाले अ़क़ीदत मन्दों की अच्छे रास्ते की त़रफ़ रहनुमाई और उन की मदद भी फ़रमाते हैं ।

          ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम इस्माई़ल ह़क़्क़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام, औलियाए किराम और शहीदों رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के जिस्म क़ब्रों में भी न तो तब्दील होते हैं और न ही गल सड़ते हैं क्यूंकि अल्लाह पाक ने उन के जिस्मों को उस ख़राबी से जो गोश्त के गलने, सड़ने से पैदा होती है, मह़फ़ूज़ रखा है । (تفسیر روح البیان، پ۱۰،التوبۃ،تحت الایۃ:۴۱، ۳/۴۳۹)

          ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जिन से ज़िन्दगी में मदद त़लब की जा सकती है, उन तमाम से बा'दे वफ़ात भी मदद त़लब की जा सकती है । इसी त़रह़ बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن का फ़रमान है : चार बुज़ुर्ग वोह हैं जो उसी त़रह़ मुआ़मलात में इख़्तियार चलाते हैं जैसे अपनी ज़िन्दगी में चलाते थे (वोह विसाले ज़ाहिरी के बा'द ज़िन्दगी से) कई गुना ज़ियादा इख़्तियार चलाते हैं । ह़ज़रते सय्यिदुना मा'रूफ़ कर्ख़ी, ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمَا और दो इन के इ़लावा (या'नी ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़क़ील मुन्जिबी और ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ ह़या बिन कै़स ह़र्रानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمَا) हैं ।

(بہجۃالاسرار، ص ۱۲۴،لمعات التنقیح ، کتاب الجنائز،باب زیارۃ القبور،۴/۲۱۵،تحت  الباب:۸)

          आइये ! इस ज़िम्न में ऐसे दो ईमान अफ़रोज़ वाक़िआ़त सुनते हैं जिन में औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن ने बा'दे विसाल अपने मज़ारात पर ह़ाज़िरी देने वालों की ह़ाजत रवाई फ़रमाई । चुनान्चे,

बा'दे विसाल ह़ाजत रवाई

          ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ उ़मर फ़ारूसी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मुझे कई मरतबा ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम रफ़ाई़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के मज़ारे अक़्दस पर ह़ाज़िरी की सआ़दत नसीब हुई । एक मरतबा तो ऐसा भी हुवा कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने क़ब्रे मुबारक से बुलन्द आवाज़ से मेरी एक ह़ाजत के बारे में फ़रमाया : जा ! तेरी ह़ाजत पूरी कर दी गई । (جامع کرامات الاولیاء،۱/۴۹۱)

क़र्ज़ मुआ़फ़ हो गया

          ह़ज़रते सय्यिदुना ह़मीदी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : एक बार मुझ पर क़र्ज़ था, इसी परेशानी के आ़लम में, मैं ह़ज़रते सय्यिदुना मुह़म्मद बिन जा'फ़र ह़ुसैनी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के मज़ार शरीफ़ पर ह़ाज़िर हुवा और वहां बैठ कर कुछ देर क़ुरआने पाक की तिलावत की और रो दिया । मज़ार की ज़ियारत के लिये आने वाले एक शख़्स ने मेरा रोना सुन लिया ।