Book Name:Allah Walon Kay Ikhtiyarat
शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ "फै़ज़ाने सुन्नत" जिल्द अव्वल, सफ़ह़ा 419 पर नक़्ल फ़रमाते हैं, ह़ज़रते (सय्यिदुना) दाता गंज बख़्श अ़ली हजवेरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : हम तीन क़रीबी दोस्त ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ इब्ने मा'ला رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की ज़ियारत के लिये "रम्ला" नामी गांव की त़रफ़ चले । रास्ते में येह त़ै किया कि हम में से हर शख़्स कोई न कोई मुराद अपने दिल में रख ले । मैं ने येह मुराद रखी : मुझे ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ इब्ने मा'ला رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ से (ह़ज़रते सय्यिदुना) ह़ुसैन बिन मन्सूर ह़ल्लाज رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की मुनाजात और अश्आ़र लेने हैं । दूसरे ने येह मुराद त़ै की कि मुझे तिल्ली की बीमारी से शिफ़ा ह़ासिल हो जाए । तीसरे ने कहा : मुझे ह़ल्वा साबूनी खाने की ख़्वाहिश है । जब हम लोग ह़ाज़िरे ख़िदमत हुवे, तो आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने ह़ज़रते सय्यिदुना ह़ुसैन बिन मन्सूर ह़ल्लाज رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के अश्आ़र और मुनाजात लिखवा कर मेरे लिये तय्यार रखे थे जो मुझे अ़त़ा फ़रमा दिये । दूसरे दरवेश के पेट पर हाथ फेरा, उस की तिल्ली की तक्लीफ़ दूर हो गई । तीसरे से फ़रमाया : साबूनी ह़ल्वा शाही दरबारों की ग़िज़ा है मगर आप ने सूफ़ियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن का लिबास पहन रखा है ! दो में से एक चीज़ इख़्तियार कीजिये । (کشف المحجوب،باب آدابھم فی الصحبۃ فی الاقامۃ ،ص ۳۸۴)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि अल्लाह पाक की अ़त़ा से औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن लोगों के दिलों के अह़वाल जान लेते हैं, जभी तो ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ इब्ने मा'ला رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ ने बिग़ैर पूछे ह़ुज़ूर दाता गंज बख़्श, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ली हजवेरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ और उन के क़रीबी दोस्तों की दिली मुरादें बयान कर दीं और दो की मुरादें पूरी फ़रमा कर तीसरे को इस्लाह़ का मदनी फूल इ़नायत फ़रमाया । मा'लूम हुवा ! जब अल्लाह पाक के वली की बारगाह में ह़ाज़िरी हो, तो दिल संभालना चाहिये और ज़िन्दगी भर इन औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की अ़क़ीदतो मह़ब्बत को दिल में क़ाइम रखना चाहिये, ऐसा न हो कि बन्दा कुछ अ़र्सा इन की सोह़बत में रह कर इन से तरबिय्यत पा कर इन्ही को ह़क़ीर जानने लगे, अगर कोई ऐसा करे या दिल में भी ऐसा सोचे, तो इन औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के फै़ज़ान से मह़रूमी के साथ साथ सख़्त नुक़्सान भी उठाता है । जैसा कि :
मुर्शिद से बद ए'तिक़ादी के सबब चेहरा सियाह हो गया
ह़ज़रते सय्यिदुना जुनैद बग़दादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ के एक मुरीद की निय्यत में कुछ ख़राबी आ गई, वोह समझा कि उसे भी बहुत बड़ा मक़ाम ह़ासिल हो गया है और अब उसे मुर्शिद की ज़रूरत नहीं रही । लिहाज़ा वोह ह़ज़रते सय्यिदुना जुनैद बग़दादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की बारगाह से मुंह मोड़ कर चला गया फिर एक दिन येह देखने और आज़माने आया कि क्या ह़ज़रते सय्यिदुना जुनैद बग़दादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ उस के दिल के ख़यालात से आगाह हैं