Jawani Me Ibadat kay Fazail

Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail

      मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि गुनाह अगर्चे एक ही होता है मगर उस की वज्ह से इन्सान दस बुराइयों का शिकार हो जाता है । लिहाज़ा जब भी कोई गुनाह हो जाए, तो फ़ौरन रब्बे करीम की बारगाह में सच्ची तौबा कीजिये । अफ़्सोस ! सद अफ़्सोस ! बा'ज़ नादान जवानी के नशे और फ़ानी दुन्या के धोके में मुब्तला हो कर लम्बी लम्बी उम्मीदें बांधे, ग़फ़्लत की चादर ताने, शरई़ अह़काम को पसे पुश्त डाल कर तौबा के मुआ़मले में मुसल्सल टाल मटोल से काम लेते हुवे ख़ुद को इस त़रह़ दिलासे देते हैं कि "अभी तो मेरे खेलने कूदने के दिन हैं", "फ़ुलां को देखो वोह तो इतना बूढ़ा हो चुका है मगर अभी तक ज़िन्दा है जब कि मैं तो अभी तन्दुरुस्त और जवान हूं", यूं झूटी और खोखली उम्मीदों के सहारे ज़िन्दा रहते हैं फिर जैसे जैसे जवानी का ज़वाल शुरूअ़ होता है, तो बुढ़ापा भी अपनी जड़ें मज़बूत़ करता चला जाता है फिर जा कर ऐसों को होश आता है कि अब तो मुझे तौबा कर के ख़ुद को गुनाहों से बचाने और अल्लाह करीम की ख़ूब ख़ूब इ़बादात बजा लाने का पक्का इरादा करना चाहिये फिर अगर्चे बसा अवक़ात हिम्मत कर के नेकियां करने में कामयाब हो भी जाते हैं मगर जवानी की बहारों को याद कर के ख़ूब दिल जलाते और अश्क बहाते हैं कि ऐ काश ! मैं अपनी जवानी को इ़बादतो रियाज़त में बसर कर लेता मगर आह ! जवानी तो किसी "गुज़रे कल" की त़रह़ जा चुकी और अब पलट कर कभी वापस नहीं आएगी ।

दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! जवानी में नेक नमाज़ी बनने और रिज़ाए इलाही ह़ासिल करने के लिये आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता रहिये और नेकी की दा'वत की धूमें मचाने में दा'वते इस्लामी का साथ दीजिये । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ दा'वते इस्लामी दुन्या भर में कमो बेश 104 शो'बाजात में दीने मतीन की ख़िदमत में मसरूफ़े अ़मल है, इन्ही शो'बाजात में से एक "दारुल इफ़्ता अहले सुन्नत" भी है, जिस के तह़्त सब से पहला दारुल इफ़्ता 15 शा'बानुल मुअ़ज़्ज़म 1421 सिने हि. को जामेअ़