Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail
और ख़त्म हो जाने वाली दुन्या में खो कर दौलत कमाने के नाजाइज़ त़रीक़ों के सबब गुनाह करता है और इ़बादतो रियाज़त की त़रफ़ माइल नहीं हो पाता ।
याद रखिये ! हमें बहुत ही थोड़े वक़्त के लिये दुन्या में भेजा गया है और इस वक़्फे़ में क़ब्रो ह़श्र के त़वील तरीन मुआ़मलात के लिये तय्यारी भी करनी है, लिहाज़ा समझदार वोही है जो इस थोड़े से वक़्त को ग़नीमत जानते हुवे क़ब्रो ह़श्र की तय्यारी में मश्ग़ूल हो जाए और अपना क़ीमती वक़्त फ़ुज़ूल कामों में बरबाद न करे क्यूंकि मा'लूम नहीं कि आइन्दा लम्ह़े वोह ज़िन्दा भी रहेगा या मौत उसे लम्बे अ़र्से के लिये गहरी नींद सुला देगी । लिहाज़ा जवानी और ज़िन्दगी को ग़नीमत जानते हुवे नेकियों में मश्ग़ूल हो जाइये ।
ह़दीसे पाक में इरशाद होता है : पांच चीज़ों को पांच से पहले ग़नीमत जानो । बुढ़ापे से पहले जवानी को, बीमारी से पहले तन्दुरुस्ती को, फ़क़ीरी से पहले अमीरी को, मसरूफ़िय्यत से पहले फ़ुरसत को और मौत से पहले ज़िन्दगी को । (مِشْکَاۃُ المَصَابِیْح،کتاب الرقاق، الفصل الثانی، ۲/۲۴۵، حدیث:۵۱۷۴) अगर हम भी अपनी जवानी को ग़फ़्लत में गंवाने के बजाए क़ब्रो आख़िरत की तय्यारी में मश्ग़ूल हो जाएंगे, तो इस की बरकत से न सिर्फ़ हमारी दुन्या बेहतर होगी बल्कि क़ब्र में भी रब्बे करीम की नवाज़िशों की छमाछम बारिशें होंगी, اِنْ شَآءَ اللّٰہ । आइये ! इस ज़िमन में एक बहुत ही प्यारी ह़िकायत सुनते हैं । चुनान्चे,
अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना उ़मर फ़ारूके़ आ'ज़म رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ के ज़माने में एक नेक नौजवान मस्जिद में मश्ग़ूले इ़बादत रहता था, जब उस का इन्तिक़ाल हो गया, तो (रातों रात उस के ग़ुस्ल और कफ़न, दफ़्न का इन्तिज़ाम करने के बा'द) सुब्ह़ जिस वक़्त अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना उ़मर फ़ारूक़े आ'ज़म رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ को इस वाक़िए़ की ख़बर दी गई, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ उस के वालिद के पास उस के नेक बेटे के इन्तिक़ाल की ता'ज़ियत के सिलसिले में तशरीफ़ ले गए । (ता'ज़ियत कर लेने के बा'द) आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने इरशाद फ़रमाया : तुम ने मुझे ख़बर क्यूं न दी ? (कि मैं भी उस की नमाज़े