Jawani Me Ibadat kay Fazail

Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail

इ़बादत गुज़ार नौजवान

        दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "ह़िकायतें और नसीह़तें" के सफ़ह़ा नम्बर 320 पर है : एक बुज़ुर्ग رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं ने एक नौजवान को आबादी और लोगों से अलग थलग अकेला जंगल में इ़बादत करते हुवे देखा । मैं ने सलाम किया, उस ने जवाब दिया । फिर मैं ने उस से कहा : ऐ नौजवान ! तुम ऐसी वीरान जगह में क्यूं हो जहां तुम्हारा कोई मददगार है, न साथी ? उस ने कहा : क्यूं नहीं ! मेरे रब्बे करीम की क़सम ! मेरा मददगार भी है और साथी भी । मैं ने पूछा : (तुम्हारा) मददगार व साथी कहां है ? उस ने जवाब दिया : वोह अपनी इ़ज़्ज़त के साथ मुझ पर बुज़ुर्गी रखता है, अपने इ़ल्मो ह़िक्मत के साथ, मेरे साथ है, अपनी हिदायत के साथ, मेरे सामने और उस की ने'मत व अ़ज़मत मेरे दाएं बाएं है । जब मैं ने येह कलाम सुना तो अ़र्ज़ की : क्या आप मुझे अपनी सोह़बत इख़्तियार करने की इजाज़त देंगे ? तो वोह कहने लगा : आप की रफ़ाक़त (या'नी सोह़बत) मुझे इ़बादत से ग़ाफ़िल कर देगी और मैं इस बात को पसन्द नहीं करता (क्यूंकि) मशरिक़ से मग़रिब तक ज़मीन का बादशाह मेरे लिये काफ़ी है । मैं ने पूछा : आप को इस जगह में घबराहट नहीं होती ? उस ने मुझे जवाब दिया : जिस का ह़बीब व अनीस (या'नी दोस्त) अल्लाह करीम हो, उसे क्यूं कर घबराहट होगी ? मैं ने पूछा : खाना कहां से खाते हैं ? जवाब दिया : जब मैं छोटा था, तो उस ने अपने लुत़्फ़ो करम से मां के पेट में भी मुझे ग़िज़ा दी और अब जब कि मैं बड़ा हो गया हूं, तो क्या अब वोह मुझे रिज़्क़ नहीं अ़त़ा फ़रमाएगा ? मेरे लिये उस के पास मुक़र्रर शुदा रिज़्क़ है और उस का वक़्त भी लिखा हुवा है । फिर मैं ने उस से दुआ़ की दरख़ास्त की, तो उस ने मुझे यूं दुआ़ दी : अल्लाह करीम आप की आंखों को अपनी ना फ़रमानी से मह़फ़ूज़ फ़रमाए, आप के दिल को अपने ख़ौफ़ से भर दे और आप को उन लोगों से न बनाए जो उस के ग़ैर में मश्ग़ूल हो कर इ़बादत से ग़ाफ़िल हो जाते हैं । इस के बा'द जब वोह जाने के लिये खड़ा हुवा, तो मैं ने उस के क़रीब जा कर अ़र्ज़ की :  ऐ मेरे भाई ! फिर कब आप से मुलाक़ात होगी