Jawani Me Ibadat kay Fazail

Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail

? तो वोह मुस्कुरा कर कहने लगा : आज के बा'द दुन्या में तो आप से मुलाक़ात न होगी, हां ! बरोजे़ क़ियामत जब सब लोग जम्अ़ होंगे, तो अगर आप मुझ से मिलना चाहें, तो दीदारे इलाही करने वालों में मुझे तलाश कीजियेगा । मैं ने पूछा : आप को येह कैसे मा'लूम हो गया ? जवाब दिया : उस की इ़ज़्ज़त की क़सम ! उसी के सबब मा'लूम हुवा क्यूंकि मैं ने अपनी आंख को ह़राम कर्दा चीज़ों से और अपने नफ़्स को ख़्वाहिशात के हु़सूल से बाज़ रखा और अन्धेरी रातों में उस की इ़बादत के लिये अ़लाह़िदगी इख़्तियार की (मुझे उम्मीद है कि वोह मुझ से ख़ुश होगा और) इस के बदले वोह मुझे अपना दीदार कराएगा । फिर वोह नौजवान ग़ाइब हो गया, इस के बा'द फिर कभी उस से मुलाक़ात न हो सकी । (الروض الفائق،المجلس الحادی و الثلاثون فی مناقب الصالحین،ص۱۶۶-۱۶۷)

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा वाक़िए़ में उस नौजवान ने जवानी के ज़माने में ही दुन्या से रिश्ता तोड़ कर इ़बादतो रियाज़त में ख़ुद को मश्ग़ूल रखा और शरीअ़त की ह़राम कर्दा चीज़ों को देखने से बाज़ रहा और अकेला उस जंगल में रिहाइश इख़्तियार कर ली । इस ह़िकायत में बिल ख़ुसूस उन नौजवानों के लिये इ़ब्रत के बे शुमार मदनी फूल मौजूद हैं कि जो अपनी जवानी के नशे में मद्होश रहते हुवे नफ़्सो शैत़ान के बहकावे में आ कर गुनाहों में मुलव्वस रहते हैं और रब्बे करीम की नाराज़ी का सामान करते हैं । ऐसों को चाहिये कि जवानी की अहम्मिय्यत को समझते हुवे इस के क़ीमती लम्ह़ात को फ़ुज़ूलिय्यात में बरबाद करने के बजाए अल्लाह पाक की इ़बादत में गुज़ारें कि ज़िन्दगी में जवानी की ने'मत सिर्फ़ एक ही बार मिलती है ।

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़रमाते हैं : सिह़ह़त, जवानी, मालदारी और ज़िन्दगी को ज़ाएअ़ न जाने दो, इस में नेक आ'माल कर लो कि येह ने'मतें बार बार नहीं मिलतीं । (मज़ीद फ़रमाते हैं :) जवानी खेल कूद में ज़ाएअ़ कर के बुढ़ापे में जब कि आ'ज़ा बेकार हो जाएं, कसरते इ़बादत की ख़्वाहिश करना बे वुक़ूफ़ी है, जो (अ़मल) करना है, जवानी में कर लो कि जवान, नेक आदमी का बहुत बड़ा दरजा है ।