Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail
मह़ब्बत में अपनी गुमा या इलाही न पाऊं मैं अपना पता या इलाही
तू अपनी विलायत की ख़ैरात दे दे मेरे ग़ौस का वासित़ा या इलाही
(वसाइले बख़्शिश, स. 105)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि जवानी की क़द्र करने वालों पर अल्लाह करीम कैसा ख़ास फ़ज़्लो करम फ़रमाता है कि उन्हें अपने मह़बूब बन्दों में शामिल फ़रमा लेता है । लिहाज़ा जवान इस्लामी भाइयों की ख़िदमत में अ़र्ज़ है कि अगर बुढ़ापे में सुकून व इत़मीनान वाली ज़िन्दगी
गुज़ारने के ख़्वाहिश मन्द हैं, तो ने'मते जवानी को ग़नीमत जानते हुवे इस ख़त्म होने वाली दुन्या के पीछे भागने के बजाए अपने नफ़्स को इ़बादतो रियाज़त की जानिब माइल करने की कोशिश कीजिये, अगर्चे येह बेह़द दुशवार है क्यूंकि जवानी में उम्मीदें और ख़्वाहिशात उ़रूज पर होती हैं लेकिन अगर हम दीगर मुआ़मलात के साथ साथ हु़ज़ूरे अकरम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की पैरवी करते हुवे आप की इ़बादतो रियाज़त से सजी पाकीज़ा ज़िन्दगी के मुत़ाबिक़ अ़मल करेंगे, तो اِنْ شَآءَ اللّٰہ हमारी ज़िन्दगी में भी मदनी बहारें आ जाएंगी ।
आक़ा عَلَیْہِ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام का ज़ौके़ इ़बादत
ह़ज़रते सय्यिदुना अ़त़ा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ फ़रमाते हैं : मैं और मेरे साथ ह़ज़रते सय्यिदुना इबने उ़मर और ह़ज़रते सय्यिदुना उ़बैद बिन अ़म्र رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہُم اَجْمَعِیْن, उम्मुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदतुना आ़इशा सिद्दीक़ा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا की बारगाहे आ़लिया में ह़ाज़िर हुवे । ह़ज़रते सय्यिदुना इबने उ़मर رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا ने अ़र्ज़ की : हमें रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के बारे में ह़ैरत में डालने वाली कोई बात बतलाइये । तो आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا रो पड़ीं और इरशाद फ़रमाया : एक रात रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मेरे पास तशरीफ़ लाए और फ़रमाने लगे : मुझे इजाज़त दो कि मैं अपने रब्बे करीम की इ़बादत कर लूं