Jawani Me Ibadat kay Fazail

Book Name:Jawani Me Ibadat kay Fazail

जनाज़ा वग़ैरा में शरीक हो जाता) उस ने अ़र्ज़ की : ऐ अमीरल मोमिनीन ! रात (काफ़ी) हो चुकी थी, (लिहाज़ा आप के आराम के पेशे नज़र आप को बताना मुनासिब न समझा गया) तो अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना उ़मर फ़ारूके़ आ'ज़म رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने इरशाद फ़रमाया : मुझे उस नेक नौजवान की क़ब्र के पास ले चलो, लिहाज़ा अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना उ़मर फ़ारूके़ आ'ज़म رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ और आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ के साथियों को (उस की) क़ब्र के पास ले जाया गया, तो आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ ने पुकारा : ऐ फ़ुलां ! (अल्लाह पाक फ़रमाता है :)

وَ لِمَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهٖ جَنَّتٰنِۚ(۴۶)(پارہ۲۷،الرحمن:۴۶ )

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और जो अपने रब के हु़ज़ूर खड़े होने से डरे, उस के लिये दो जन्नतें हैं ।

उस (बा अ़मल) नौजवान ने क़ब्र के अन्दर से दो मरतबा जवाब   दिया : या अमीरल मोमिनीन ! मेरे रब्बे करीम ने मुझे वोह दो जन्नतें अ़त़ा फ़रमा दी हैं । (تاریخِ ابنِ عساکر،عمرو بن جامع بن عمرو بن محمد بن حرب،۴۵/۴۵۰،رقم:۵۳۲۰ ملتقطاً)

        سُبْحٰنَ اللّٰہ ! आप ने सुना कि उस नौजवान ने अपनी सारी ज़िन्दगी गुनाहों से बचते हुवे नेकियों में गुज़ारी, तो मरने के बा'द येह इ़बादत उस की बख़्शिश व मग़फ़िरत का सबब बनी और जन्नत की आ'ला ने'मतें भी नसीब हुईं । याद रखिये ! येह ख़ूब सूरती व जवानी ख़त्म होने वाली दौलत है और इस पर ग़ुरूरो तकब्बुर करना बे वुक़ूफ़ी व नादानी है ।

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! तन्दुरुस्ती व जवानी पर इतराने और दिन रात गुनाहों में ज़ाएअ़ करने के बजाए इख़्लास व इस्तिक़ामत के साथ ज़ौके़ इ़बादत और शौके़ तिलावत का मा'मूल बनाए रखिये, ऐसे में अगर बुढ़ापा आ गया और इ़बादत की लगन भी बाक़ी रही, तो सिह़ह़त व हिम्मत न होने के बा वुजूद اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस ह़ालत में भी जवानी की इ़बादतों जैसा सवाब मिलता रहेगा । चुनान्चे,