Book Name:Madani Inamaat,Rahe Nijaat
अगर हम आख़िरत की सुर्ख़रूई चाहते हैं, तो हमें अच्छी त़रह़ ग़ौर कर लेना चाहिये कि हम ने अपने रब्बे करीम को राज़ी करने के लिये कितनी नेकियां कीं बल्कि हम में से हर एक को चाहिये कि समझदारी का सुबूत देते हुवे रोज़ाना बिला नाग़ा फ़िक्रे मदीना (या'नी मुह़ासबा व ग़ौरो फ़िक्र) करने की आदत बनाए, वरना कहीं ऐसा न हो कि यूंही ग़फ़्लत की ह़ालत में हमें मौत आ जाए और हमारे दामन में पछतावे के सिवा कुछ बाक़ी न रहे ।
याद रहे कि दा'वते इस्लामी के मदनी माह़ोल में एह़तिसाबे आ'माल या मुह़ासबे ही को "फ़िक्रे मदीना" कहा जाता है । फ़िक्रे मदीना से मुराद येह है कि इन्सान उख़रवी ए'तिबार से अपने मा'मूलाते ज़िन्दगी पर ग़ौरो फ़िक्र करे फिर जो काम उस की आख़िरत के लिये नुक़्सान देह साबित हो सकते हों, उन की इस्लाह़ की कोशिश करे और जो काम उख़रवी ए'तिबार से नफ़्अ़ बख़्श नज़र आएं, उन में बेहतरी के लिये इक़्दामात करे । इस्तिक़ामत के साथ फ़िक्रे मदीना करने से ख़ूब ख़ूब बरकतें ह़ासिल होती हैं, येही वज्ह है कि बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن निहायत इस्तिक़ामत के साथ फ़िक्रे मदीना (या'नी अपने आ'माल का मुह़ासबा) किया करते थे और इस से किसी सूरत भी ग़फ़्लत इख़्तियार न करते । चुनान्चे,
ह़ज़रते सय्यिदुना मुह़म्मद बिन वासेअ़ رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ फ़रमाते हैं कि अहले बसरा में से किसी शख़्स ने ह़ज़रते सय्यिदुना अबू ज़र رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ की वफ़ात के बा'द उन की ज़ौजए मोह़तरमा से उन की इ़बादत के बारे में पूछा, तो उन्हों ने जवाब दिया : वोह दिन भर घर के एक कोने में (आख़िरत के बारे में) ग़ौरो फ़िक्र करते रहते थे । (احیاء علوم الدین، کتاب التفکر ،۵/۱۶۲)