Book Name:Madani Inamaat,Rahe Nijaat
में । (यूं आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ फ़िक्रे मदीना करते रहते) इस दौरान आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ की चश्माने मुबारक (या'नी आंखों) से आंसू भी बहते रहते ।
(ह़िकायातुस्सालिह़ीन, स. 50)
मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحِمَہُمُ اللہُ الْمُبِیْن में फ़िक्रे मदीना का जज़्बा किस क़दर कूट कूट कर भरा हुवा था, इन मुबारक हस्तियों के नज़दीक फ़िक्रे मदीना (या'नी अपना मुह़ासबा करने) की किस क़दर अह़म्मिय्यत थी कि हर वक़्त अपने आ'माल के बारे में फ़िक्रमन्द रहते कि न जाने हमारे येह आ'माल अल्लाह की बारगाह में मक़्बूल हो कर हमारी मग़फ़िरत का ज़रीआ बनेंगे या मर्दूद हो कर हमारी हलाकत का सबब साबित होंगे । ज़रा सोचिये कि जब येह मक़्बूलाने बारगाह इस क़दर इस्तिक़ामत के साथ फ़िक्रे मदीना किया करते थे, तो हम गुनाहगारों को फ़िक्रे मदीना करने की किस क़दर ज़रूरत है ।
फ़िक्रे मदीना करने की इफ़ादिय्यत और न करने के नुक़्सान का अन्दाज़ा इस मिसाल से लगाइये कि जिस त़रह़ दुन्यावी कारोबार से तअ़ल्लुक़ रखने वाला कोई भी शख़्स उसी वक़्त कामयाब कारोबारी बन सकता है जब वोह अपने ख़र्च किये हुवे माल से कई गुना ज़ियादा नफ़्अ़ कमाने में कामयाब हो जाए और उस का अस्ल सरमाया भी मह़फ़ूज़ रहे । इस मक़्सद के ह़ुसूल के लिये वोह अपने कारोबार (Business) में ह़िसाब किताब को रोज़ाना, हफ़्तावार, माहाना या सालाना की बुन्याद पर तक़्सीम करता है फिर उस पर मुख़्तलिफ़ पहलूओं से न सिर्फ़ ज़बानी ग़ौरो फ़िक्र करता है बल्कि उस को तह़रीर भी करता है और मुख़्तलिफ़ त़रीक़ों से उस को मह़फ़ूज़ करने की कोशिश करता है नीज़ जहां किसी क़िस्म की ख़ामी नज़र आए, उसे दुरुस्त करता है और जो चीज़ नफ़्अ़ के ह़ुसूल में रुकावट बनती नज़र आए, उस को दूर करता है । अगर वोह अपने कारोबारी मुआमलात का मुह़ासबा न करे, तो अक्सर अवक़ात उसे नफ़्अ़ ह़ासिल होना तो दर किनार, उल्टा नुक़्सान का सामना करना पड़ता है और अगर उस नुक़्सान के बा'द भी वोह "ख़्वाबे ख़रगोश" (या'नी ग़फ़्लत की गहरी